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Monday 17 December 2012

हर्बल-रंग कैसे बनाएं - How To Make herbal Colors at Home In Hindi


हम हमेशा घर पर ही रंग बना कर होली खेलते रहे हैं… सोचा इस बार ये फ़ॉर्मूला सभी के साथ शेयर किया जाय…. हर्बल के नाम पर बाज़ार में जो इतनी लूट मची है उससे लोगों को बचाया जाय….ये रंग हानिरहित होते हैं … इससे पानी की भी बचत होगी, सभी सामान घर में आसानी से मिल जाते हैं….





१) हरा रंग :
सामग्री: ५०० ग्रा अरारोट, ३०० ग्रा नीम की पत्ती, १०० ग्रा पुदीना पत्ती, २०-२५ तुलसी पत्ती, १/२ चम्मच हरा खाद्य रंग
विधि: नीम, पुदीना और तुलसी की पत्तियों को धूप में सुखा कर महीन पीस लेवें; १ से १.१/२ घंटे में सूख जाएँगी… सभी चीजों को अरारोट में मिला लेवें.
लीजिये………. हरा रंग तैयार है….
२) नारंगी रंग :
सामग्री: ५०० ग्रा महीन बेसन, ५०० ग्रा गेंदे के सूखे फूल, २-३ संतरों के छिलके, १/२ चम्मच नारंगी खाद्य रंग
विधि: गेंदा के फूल की पत्तियां अलग कर लेवें और धूप में सुखा लेवें; १ से १.१/२ घंटे में सूख जाएँगी; संतरे के छिलके बारीक बारीक करके धूप में सुखा लेवें;
इन्हें मिक्सी में पीस कर बेसन के साथ मिला लेवें….
लीजिये………. नारंगी रंग तैयार है….
३) लाल रंग :
सामग्री: ५०० ग्रा मैदा, १०० ग्रा चन्दन पावडर, ४ चुकंदर, १ चम्मच लाल खाद्य रंग
विधि: चुकंदर कद्दू कस करके धूप में सुखा लेवें और मिक्सी में महीन पीस लेवें
सब चीजों को एक साथ मिक्स कर लेवें
लीजिये………. खुशबूदार लाल रंग तैयार है….
४) बच्चों के लिए पिचकारी रंग : आजकल रंग बहुत ही निकृष्ट श्रेणी के आते हैं… अक्सर हम बच्चो को रंग खेलने से मना करते हैं… डरते हैं कि कहीं आँखों में या मुंह में न चला जाय…ऐसा हो गया तो बच्चे को तो तकलीफ होगी ही और त्योंहार का मज़ा भी किरकिरा हो जायेगा… इन सबसे बचने के लिए इस बार घर पर ही रंग बनायें और बच्चो को जम कर रंग खेलने देवें….
सामग्री एवं विधि: ४-६ चुकंदर बारीक काट कर मिक्सी में बारीक पीस लेवें और थोड़े से पानी में घोल कर छान लेवें, ३-४ चम्मच गुलाब जल भी मिला देवें …ये 10 लीटर पानी के लिए है…..
बस लीजिये…… बच्चो के लिए खुशबूदार पिचकारी लाल रंग तैयार है….. उन्हें पिचकारी भर भर कर खूब रंग खेलने देवें
ये है बच्चों का पिचकारी रंग…आप भी खेलें इनके संग….

होली खेलो सबके साथ… ख़राब रंगों को देदो मात…


Thanks & regards,

किञ्जल्क तिवारी


Monday 26 November 2012

है नमन उनको कि जो यशकाय को अमरत्व देकर इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गए हैं ....



है नमन उनको कि जो यशकाय को अमरत्व देकर |
इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गए हैं ||

A Big Salute For The Heroes Of 26/11

Monday 22 October 2012

ब्रह्मांड के ब्लैकहोल


भारतीय मूल की वैज्ञानिक डॉ. मंदा बनर्जी ने प्राचीन ब्रह्मांड  में विशालकाय ब्लैकहोल के झुंड का पता लगा कर पूरी दुनिया के खगोल वैज्ञानिकों में जबरदस्त हलचल मचा दी है। ये ब्लैकहोल अभी तक अज्ञात थे। डॉ. बनर्जी के नेतृत्व में कैम्बि्रज की एक रिसर्च टीम ने पृथ्वी से करीब 11 अरब प्रकाश वर्ष दूर इन ब्लैकहोल की मौजूदगी का पता लगाया है। रिसर्चरों का अनुमान है इस झुण्ड में कम से कम 400 ब्लैकहोल हैं जिनका रेडिएशन पृथ्वी पर पहुंच रहा है। वैज्ञानिक समुदाय इस बात पर हतप्रभ है कि इतने विराट ब्लैकहोल अभी तक हमारे पर्यवेक्षण के दायरे में क्यों नहीं आए। ब्लैकहोल का यह झुंड धूल के चक्रीदार बादलों से घिरा हुआ है। इसी वजह से इन्हें अभी तक देख पाना संभव नहीं था। अब डॉ. बनर्जी की टीम ने अत्याधुनिक इंफ्रारेड टेलीस्कोप से धूल के बादलों को भेदते हुए इस ब्लैकहोल झुंड को खोज लिया है।

डॉ. बनर्जी ने ब्रिटेन की रॉयल एस्ट्रोनोमिकल सोसायटी की मासिक पत्रिका में अपनी खोज की जानकारी दी है। उन्होंने लिखा है कि रिसर्च टीम के निष्कर्षो से विशाल ब्लैकहोल के अध्ययन पर गहरा असर पड़ेगा। वैसे तो इन ब्लैकहोल का अध्ययन पिछले कुछ समय से हो रहा है, नए निष्कर्षो से संकेत मिलता है कि कुछ अत्यंत विशाल ब्लैकहोल हमारी दृष्टि से छुपे हुए हैं। ब्लैकहोल के झुंड में एक दैत्याकार ब्लैकहोल है जिसका द्रव्यमान सूरज से 10 अरब गुना और हमारी आकाशगंगा के सबसे विराट ब्लैकहोल से 10000 गुना अधिक है। इस तरह यह अब तक देखा गया विशालतम ब्लैकहोल है। इस तरह के अधिकांश ब्लैकहोल उस पदार्थ के माध्यम से देखे जाते हैं जिसे वे अपनी ओर खींचते हैं। आसपास का पदार्थ ब्लैकहोल के नजदीक जाते ही गरम हो जाता है। खगोल वैज्ञानिक इस रेडिएशन को देख कर ब्लेक होल का पर्यवेक्षण का सकते हैं। डॉ. बनर्जी की खोज के बाद खगोल वैज्ञानिक ब्रंाांड के उन कोनों को फिर से देखेंगे.जो धूल के घने बादलों में छिपे हुए हैं।

आखिर क्या होते हैं ये ब्लैकहोल? ब्लैकहोल अंतरिक्ष का वह क्षेत्र हैं जहां शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के कारण वहां से प्रकाश बाहर नहीं निकल सकता। इसमें गुरुत्वाकर्षण बहुत ज्यादा इसलिए है क्योंकि पदार्थ को बहुत छोटी जगह में फिट होना पड़ता है। ऐसा तारे के नष्ट होने की स्थिति में होता है। चूंकि यहां से प्रकाश बाहर नहीं आ सकता। लोग इन्हें नहीं देख सकते। ये अदृश्य होते हैं। किसी तारे के नष्ट होने पर ब्लैकहोल बनता है। ब्लैकहोल छोटे और बड़े दोनों हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का खयाल है कि सबसे छोटे ब्लैकहोल एक अणु जितने छोटे हैं। ये ब्लेक होल भले ही छोटे हों लेकिन उनका द्रव्यमान अथवा मॉस एक पहाड़ के बराबर होता है। द्रव्यमान एक वस्तु के अंदर पदार्थ की मात्रा को कहा जाता है। बड़े ब्लैकहोल स्टेलर कहलाते हैं। उनका द्रव्यमान सूरज के द्रव्यमान से 20 गुना तक ज्यादा होता है। सबसे बड़े ब्लैकहोल सुपरमैसिव कहलाते हैं क्योंकि उनका द्रव्यमान 10 लाख सूर्यो से भी ज्यादा होता है। हमारी मिल्कीवे आकाशगंगा में सुपरमैसिव ब्लैकहोल का नाम सैगिटेरियस है। इसका द्रव्यमान 40 लाख सूर्यो के बराबर है।

वैज्ञानिकों का खयाल है कि ये ब्लैकहोल दूसरी आकाशगंगाओं के साथ जबरदस्त टक्करों के बाद विशाल रूप लेने लगते हैं। इस प्ररिया में तारे बनते है और ब्लैकहोल इन्हें निगलने लगते हैं। इस हिंसक मुठभेड़ से आकाशगंगाओं के अंदर धूल भी पैदा होती है। ब्लैकहोल का जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण इस धूल को अपनी ओर खींच लेता है। नया खोजा गया दैत्याकार ब्लैकहोल आकाशगंगा के सबसे लाल पदार्थो में से है। इसका लाल रंग आसपास की धूल की वजह से है। डॉ. मंदा बनर्जी ने 2009 में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन से सुदूर ब्रंाांड में आकाशगंगाओं पर पीएचडी की थी। इस समय वह अपने अध्ययन के जरिये यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि आकाशगंगाओं का विकास कैसे हुआ।

Monday 15 October 2012

भारत या इंडिया, क्या नाम है देश का?



इस सवाल ने केंद्र सरकार को मुश्किल में डाल दिया है, सूचना के अधिकार क़ानून यानी आरटीआई के तहत उर्वशी शर्मा ने पूछा है कि सरकारी तौर पर भारत का नाम क्या है?
भारत या इंडिया, क्या नाम है इस देश का? सरकार से यह सवाल पूछा है लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा ने !


उन्होंने बीबीसी को बताया- इस बारे में हमारे बीच काफी असमंजस है, बच्चे पूछते हैं कि जापान का एक नाम है, चीन का एक नाम है लेकिन अपने देश के दो नाम क्यों हैं?

उर्वशी कहती हैं कि उन्होंने यह सवाल इसलिए पूछा है ताकि आने वाली पीढ़ी के बीच इस बारे में कोई संदेह न रहे।


उर्वशी बताती हैं कि उनके इस सवाल ने सरकारी दफ्तरों में हलचल मचा दी है क्योंकि सरकार के पास फिलहाल इसका कोई जवाब नहीं है।

वे कहती हैं- हमें सुबूत चाहिए कि किसने और कब इस देश का नाम भारत या इंडिया रखा? कब यह फैसला लिया गया?

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में लिखा है- ‘इंडिया दैट इज़ भारत’ इसका मतलब ये हुआ है कि देश के दो नाम हैं. सरकारी तौर पर ‘गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया’ भी कहते हैं और ‘भारत सरकार’ भी.

अंग्रेजी में भारत और इंडिया दोनों का इस्तेमाल किया जाता है जबकि हिंदी में भी इंडिया कहा जाता है. उर्वशी कहती हैं वो इस मुद्दे को गंभीरता से लेती हैं क्योंकि ये देश की पहचान का सवाल है.

उर्वशी बताती हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें जवाब मिला है जिसमें कहा गया है कि उनके आवेदन को गृह मंत्रालय के पास भेजा गया है।

वे कहती हैं कि गृह मंत्रालय में इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था इसलिए इसे संस्कृति विभाग और फिर वहाँ से राष्ट्रीय अभिलेखागार भेजा गया है जहाँ जानकारी खोजी जा रही है।

राष्ट्रीय अभिलेखागार 300 वर्षों के सरकारी दस्तावेज़ों का खज़ाना है। यहाँ के एक अधिकारी ने बताया- हम इसका जवाब तैयार कर रहे हैं, जवाब सीधे उर्वशी शर्मा को भेजा जाएगा।

उर्वशी शर्मा का कहना है कि राष्ट्रीय अभिलेखागार के पास याचिका पहुँचे तीन स्प्ताह हो गए, पर अभी तक उत्तर नहीं मिला।

उर्वशी शर्मा को राष्ट्रीय अभिलेखागार के जवाब का इंतजार है, तब तक संविधान में लिखे ‘इंडिया दैट इज भारत’ यानी इंडिया और भारत दोनों नामों को सरकारी नाम की तरह से ही देखना होगा।

Sunday 14 October 2012

जब दिल पर लगेगी तभी बात बनेगी – पर किसके लगेगी ?

आज कल टी वी हो या समाचार पेपर सब पर एक ही चर्चा है जब दिल पर लगेगी तभी बात बनेगी :- सत्यमेव जयते

पर मेरी एक बात समझ में नहीं आई की किस के दिल पर लगेगी, आमिर खान के, अभिषेक मनु सिंघवी के, एन डी तिवारी के, ओमर अब्दुल्लाह के, ये उन लोगो के जिन्होंने अपनी पहली पत्नी को छोड़ कर दूसरी, तीसरी और आगे अनेके शादी की है, क्या कभी सोचा है, देश में क्या दुनिया में हर कोई इज्ज़तदार माँ बाप ये क्यों चहाता है की उस के घर लड़की ना हो, क्यों की इन जैसे लोग अपनी खुशी ( हवस) के लिये नई-नई शादी करते है, शादी नहीं करते तो लडकियो का इस्तमाल करते है, ये वो लोग है जो समाज को दिशा देता है, जिन का युवा वर्ग अनुशरण करता है, तथा मीडिया भी इन लोगो को आगे ला कर दिखता है की आज इस महान व्यक्ति ने दूसरी, तीसरी ….. को पटाया या फसाया, मीडिया भी दो, तीन दिन तक इस खबर को दिखा कर युवा वर्ग को असा करने को उत्साहित करता है,


फिर जब एसा देख कर युवा वर्ग किसी को पटाता या फसाता है, या पटा या फसा नहीं पाता तो वो दुसरे रास्तो से अपनी (समाज की नज़र में बुरी) इच्छाओं की पूर्ति करता है, क्यों की वो जिन लोगो को देख कर या सब कर रहा है, उन लोगो को समाज में आदर्श के रूप में देखा जाता है, फिर जब उस के इस कम को समाज गलत कहता है, तो वो विद्रोही हो जाता है, क्यों की उस ने जो देखा, जो सुना, जो समझ वो उस की नज़र में ठीक है, इस कारण से देश में क्या दुनिया में हर कोई स्त्री ये चहाती है की जैसे उस ने सहा वैसा उस की पुत्री को ना सहना पड़े |

अब ये सोचो की “जब दिल पर लगेगी तभी बात बनेगी” किस के दिल पर लगनी चाहिये, देश की आम जनता के या समाज को दिशा देने वालो के

Via : jagran.com

Saturday 13 October 2012

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना / गोपालदास "नीरज"



जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,
ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।



सृजन है अधूरा अगर विश्‍व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा,
कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब,
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

Wednesday 10 October 2012

सपने देखने में डर लगता है अब... || जगजीत सिंह : प्रथम पुण्य स्मरण पर विशेष



हर इंसान अपनी जिंदगी किसी ख्वाब के साथ (सहारे) और किसी न किसी सपने के लिए जीता है। सपने... जो हमारे खुरदुरे जीवन को मखमली चादर में लपेटते हैं। पर अब, जगजी‍त सिंह की मृत्यु के बाद (प्रथम पुण्य स्मरण) मुझे सपने देखने में डर-सा लगने लगा है। गोया सपनों पर हमारा इख्तियार नहीं होता, पर....।

अब तक की जिंदगी में यूं तो कई लोगों ने मुझे प्रभावित किया है। पर दो ऐसे शख्स हैं- जिनसे मिलने की ख्वाहिश थी। एक हैं युगपुरुष महादानी कर्ण, जिनसे मिल पाना तो खैर मुमकिन था ही नहीं। दूसरी शख्सियत है जग को जी‍त लेने वाली हर दिल अजीज आवाज। बेमिसाल फनकार जगजीत सिंह, जिनसे मिलना अब सपना बनकर रह गया है। अब वे फलक पर चमकते सितारे हैं जिसे छूना नामुमकिन है। पिछले बरस आज ही के दिन हमेशा के लिए खामोश हो गई इस आवाज के मोहपाश से, उनके वजूद के सम्मोहन से कोई बाहर नहीं आ पाएगा। वो जो रवानी थी जिंदगी में, अब कमतर होती दिखती है।

वैसे जगगीत सिंह जी की मकबूलियत गजल गायक के तौर पर ज्यादा रही पर मेरा ख्याल है कि यदि आप उनके शबद या पंजाबी गीत सुनें तो जरूर मानेंगे कि मो. रफी के बाद जगजीत ही वो सदाकत आवाज है जिसके बुलाने पर ईश्वर प्रकट होते होंगे। उनके गायन और आवाज की तो खैर पूरी ‍दुनिया ही दीवानी है पर उनकी शख्सियत भ‍ी उतनी ही वजनदार है। उनकी जिंदादिली, सादगी और साफगोई आपको उनका कायल कर देती है।

इंदौर में उनकी महफिलों का हिस्सा बनकर ही मैंने ऐसा महसूस किया है। उनकी महफिल कभी खत्म न हो यही इच्छा सबके मन में रहती होगी। शायद वो सबके दिलों में जिंदादिली और जोश भर देने का उद्देश्य लेकर ही महफिल का आगाज करते थे और अंजाम यह होता कि फिर रात नहीं, दिन ही दिन होता।

खैर अब इन बातों से उनकी याद की कसक और बढ़ जाए तो क्या कीजिएगा। उनकी मौत के बाद कई आलोचनाकारों ने अपने लेखों और विचारों के जरिए (जगजीत सिंह के बारे में) नकारात्मक टिप्पणियां भी कीं। इसने जगजीत के मुरीदों को अप्रत्यक्ष रूप से आहत किया है। आज जगजीत की प्रथम पुण्यतिथि पर उन सभी से गुजारिश है कि अपने तमाम आग्रहों और झुकावों को नजरअंदाज कर जगजीत की ये गजलें सुनें...


दिल को क्या हो गया खुदा जाने, अपना गम भूल गए, सोचा नहीं अच्छा बुरा, इश्क में गैरते, माना कि मुश्ते खाक से, नजरे करम फरमाओ, ‍दीनन दुख मैं रोया परदेस में, हम तो हैं परदेस में, बात निकलेगी, बात साकी की ना टाली जाएगी, हे राम, उम्र जलवों में और... खैर बहुत लंबी लिस्ट है पर इन गजलों को सुनें और जन्नत का लुत्फ उठाएं।

इस जांबख्श आवाज ने अपने हर मुरीद को गजलों की दौलत से अमीर बना दिया है। वो खुद हमारे व्यक्तिगत खजाने के सबसे नायाब नगीने हैं। जब मैंने पहली बार मृत्युंजय (शिवाजी सावंत द्वारा लिखित पुस्तक) पढ़ी तब से कर्ण का व्यक्तित्व मेरे अस्तित्व पर छा-सा गया था। तभी से सोचा था कि ये किताब उस शख्स को भेंट करूंगी जो मुझे बेइंतहा मुतासिर करेगा।

जब जगजीत जी की आवाज पहली बार सुनी तब ये तय हो गया कि यह किताब उन्हीं को देना है। जब उनकी गजलों को पहली बार लाइव सुना तभी से यह तोहफा साथ लिए रखा। इस उम्मीद में कि शायद कभी उनसे मुलाकात हो जाए पर...।

हर महफिल के बाद इस भेंट में एक-एख चीज और जुड़ती गई और अब मखमली कपड़े में लिपटी वो किताब, एक चंदन की तस्बीह (माला), जगजीत की ही कैसेट के कवर पर बना (अधूरा) उनका पोर्ट्रेट और तेजस्वी सूर्य की छोटी-सी पेंटिंग बस यही छोटी-सी पूंजी मेरे खजाने की बरकत बनी रहेगी, ताउम्र। उनसे मिलकर उन्हीं की गजल गिटार पर सुनाने की ख्वाहिश भी उनके साथ ही खत्म हो गई, शायद। पुर्नजन्म जैसी कोई शै वाकई होती हो तो इन हसरतों को पूरा कर पाने की कोई सूरत बने, आमिन।

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले... क्या खूब फरमा गए हैं मिर्जा गालिब। जगजीत को गुजरे आज (10 अक्टूबर) पूरा एक बरस हो गया। उन्हें हमारी श्रद्धां‍जलि।

Tuesday 25 September 2012

गिलहरी


गिलहरी एक छोटी आकृति की जानवर है जो एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में बहुत अधिकता में पायी जाती है। गिलहरी के कान लबे और नुकीले होते हैं और दुम घने और मुलायम रोयों से ढकी होती है। गिलहरी बहुत चंचल होती है और बड़ी सरलता से पाली जा सकती है। गिलहरी अपने पिछले पैरों के सहारे बैठकर अगले पैरों से हाथों की तरह काम ले सकती है।

पेड़ों और झाड़ियों से दूर गिलहरियाँ शायद ही कभी देखी जाती हों। वृक्षों की छालों, कोमल प्रांकुरों, कलिकाओं तथा फलों का ये आहार करती हैं। फल में भी इन्हेंअनार सबसे अधिक प्रिय है। सेमल के फूलों का रस पीकर उनके परागण में ये बड़ी सहायक बनती हैं। अभिजनन काल में इनकी मादा दो से लेकर चार तक बच्चे किसी वृक्ष के कोटर वा पुरानी दीवार के किसी छिद्र में, अथवा छत में बाँसों के बीच घासपात या मुलायम टहनियों का नीड़ बनाकर, देती हैं। जीवन इनका साधारण्तया पाँच छह साल का होता है। आवाज़ चिर्प या ट्रिल सरीखी होती है, जो उत्तेजित अवस्था में यथेष्ट देर तक और बराबर होती रहती है।

भारत में सामान्य रूप से गिलहरियों की दो जातियाँ पाई जाती हैं। दोनों के ही शरीर का रंग कुछ कालापन लिए हुए भूरा होता है, परंतु एक की पीठ पर तीन और दूसरी की पीठ पर पाँच, अपेक्षाकृत हलके रंग की धारियाँ होती हैं, जो आगे से पीछे की ओर जाती हैं। इनमें से पीठ पर बीचों बीच होने वाली धारी सबसे अधिक लंबी होती है। तीन धारियों वाली गिलहरी को त्रिरेखिनी तथा पाँच धारियोंवाली गिलहरी को पंचरेखिनि कहते हैं।

इन दोनों जातियों के अतिरिक्त दक्षिण भारत तथा लंका के सघनतम जंगलों में उलझी हुई लताओं में छिपकर रहने वाली फुनैंबुलस प्रजाति की ही एक और गिलहरी पाई जाती है जिसे चतुर्रेखिनी कहते हैं। इसकी पीठ पर आगे से पीछे की ओर जाती हुई चार गहरे बादामी रंग की धारियाँ होती हैं। जिन्हें तीन हल्के बादामी रंग की पट्टियाँ अलग करती हैं। फुनैंबुलस प्रजाति के अतिरिक्त भारत में कैलोसाइयूरस तथा ड्रेम्नोमिस नामक दो प्रजातियों की गिलहरियाँ और पाई जाती हैं, जो हिमालय प्रदेश के वन प्रांतों में 5,000 से 9,000 फुट तक की ऊँचाई पर रहती हैं। 

Manmohan Singh Ke Dimaag MEIN सूअर का गोबर Bhara Hua hai

Tuesday 18 September 2012

बरमूडा त्रिकोण का रहस्‍य (Barmuda triangle mystery) क्‍या है?


संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका के दक्षिण पूर्वी अटलांटिक महासागर के अक्षांश 25 डिग्री से 45 डिग्री उत्‍तर तथा देशांतर 55 से 85 डिग्री के बीच फैले 39,00,000 वर्ग किमी0 के बीच फैली जगह, जोकि एक का‍ल्‍पनिक त्रिकोण जैसी दिखती है, बरमूडा त्रिकोड़  अथवा बरमूडा त्रिभुज के नाम से जानी जाती है। इस त्रिकोण के तीन कोने बरमूडा, मियामी तथा सेन जआनार, पुतौरिका को स्‍पर्श करते हैं। वर्ष 1854 से इस क्षेत्र में कुछ ऐसी घटनाऍं/दुर्घटनाऍं घटित होती रही हैं कि इसे 'मौत के त्रिकोण' के नाम से जाना जाता है।

बरमूडा त्रिकोण पहली बार विश्‍व स्‍तर पर उस समय चर्चा में आया, जब 1964 में आरगोसी नामक पत्रिका में इसपर लेख प्रकाशित हुआ। इस लेख को विसेंट एच गोडिस ने लिखा था। इसके बाद से लगातार सम्‍पूर्ण विश्‍व में इसपर इतना कुछ लिखा गया कि 1973 में एनसाइक्‍लोपीडिया ब्रिटानिका में भी इसे जगह मिल गयी। 

Friday 7 September 2012

रोवियो ने दर्शाई एंग्री बर्ड्स की अगली झलक


Rovio shows Angry birds new face
रोवियो ने दर्शाई एंग्री बर्ड्स की अगली झलक
फेसबुक पर, रोवियो ने अपने नये गेम की झलक दिखाई जिसमें शायद एक ऐसे हरे लालची सूअर की कहानी है जो एंग्री बर्ड्स के अंडे चुरा लेता है।
रोवियो मोबाइल ने एक और गेम उतारने की योजना बनाने के साथ ही एंग्री बर्ड्स की विश्वव्यापी लोकप्रियता का मजा लेना जारी रखा है। हालांकि, इस बार रोवियो ने एंग्री बर्ड्स को एक दूसरे नजरिये से दर्शाया है और उनकी कहानी का केंद्र बिंदु एक बुरा हरा सू्अर है। कंपनी ने इस संबंध में ट्विटर अकाउंट और फेसबुक पेज पहले ही जारी कर दिए हैं जिनका नाम है बैड पिग्गीज।

सैमसंग गैलेक्सी वाई बनाम नोकिया आशा 311

Samsung Galaxy Y vs Nokia Asha- 311
सैमसंग गैलेक्सी वाई बनाम नोकिया आशा 3
जहां सैमसंग गैलेक्सी वाई स्मार्टफोन है, वहीं नोकिया आशा 311 तकनीकी तौर पर तो फीचर फोन है।
नोकिया ने कुछ समय पहले अपना फीचर्स से भरपूर आशा 311 पेश किया था जो, उनके मुताबिक, स्मार्टफोन है। फिर भी अधिकतर विश्लेषक इसे फीचर फोन ही मानते हैं क्योंकि इसमें स्मार्टफोन के मल्टीटास्किंग जैसे फीचर्स नहीं हैं। रोचक बात यह है की, बाजार में इसकी कीमत 6,500 रुपये है इतने पैसों में कई एंड्रॉयड स्मार्टफोन मौजूद हैं जिनमें सैमसंग गैलेक्सी वाई भी शामिल है।

हुवैई दिवाली तक लांच करेगा तीन नए आइसीएस फोन


Huwaei to launch three new ICS phones by Diwali
वैई दिवाली तक लांच करेगा तीन नए आइसीएस फोनहुवैई दिवाली तक लांच करेगा तीन नए आइसीएस फोन

ये फोन जिनमें हुवैई एसेंड जी330, एसेंड जी600 और एसेंड वाई201 प्रो शामिल हैं।
हुवैई ने जर्मनी के बर्लिन शहर में चल रहे आईएफए समारोह के दौरान तीन नए फोनों पर से पर्दा उठाया। ये फोन जिनमें हुवैई एसेंड जी330, एसेंड जी600 और एसेंड वाई201 प्रो शामिल हैं।

Monday 3 September 2012

Speed of Light


Hi there,

Posting after ages about a quantity that is a source of energy to all living beings on earth : LIGHT.


The most well-known source of light is the Sun, or Surya Dev in Hinduism. Suryadev has been worshiped in India since time immemorial following the traditional way of respecting and worshipping important forms of nature. Suryadev is a part of many festivals, including Pongal or Makar Sankranti, Chattha Puja, etc. The Surya Namaskara is a complete exercise procedure that is part of the daily-morning routine of many Indian homes. Will surely put up a post on this beautiful Yogic exercise soon...

Jantar Mantar - Temple of Instruments


Hello Readers,

Being in Delhi, anyone fascinated by India's ancient scientific brilliance cannot afford to miss the Jantar Mantar. This historic observatory is located on Sansad Marg near Connaught Place. If you are in the mood for a walk, you can do so from the Rajiv Chowk Metro Station. Otherwise, it's a 5 minute ride in an auto-rickshaw.


The "Jantar Mantar" is a common name used to denote the set of 5 astronomical observatories built by Maharaja Jai Singh II. Apart from the Delhi, these observatories are located in Jaipur, Mathura, Ujjain and Varanasi. Except the one in Ujjain, all the others have stood the test of time.

माइक्रोसॉफ्ट का नया ऑपरेटिंग सिस्टम: विंडोज 8

दो साल पहले लॉन्च किए गए विंडोज 7 ने खुद को माइक्रोसॉफ्ट का अब तक का सबसे टिकाऊ ऑपरेटिंग सिस्टम साबित किया है। अब माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज 8 लॉन्च किया है, जिसका मकसद न सिर्फ अपनी पुरानी कामयाबी को दोहराना बल्कि कंप्यूटर चलाने के तौर-तरीके में बदलाव लाना है। हम आपको बता रहे हैं इस ऑपरेटिंग सिस्टम के आठ महत्वपूर्ण पहलू के बारे में... 

Sunday 22 April 2012

फाइबर-ऑप्टिक संचारण

Structure of  a fiber optic cable
   फाइबर-ऑप्टिक संचारण एक प्रणाली है जिसमें सूचनाओं की जानकारी एक स्थान से दूसरे स्थान में ऑप्टिकल फाइबर के माध्यम से प्रकाश बिन्दुओं के रूप में भेजी जाती हैं. प्रकाश एक विद्युत चुम्बकीय तरंग वाहक विकसित करता है जो विधिवत् रूप से जानकारी को साथ ले जाते हैं. 1970 के दशक में इसे सबसे पहले विकसित किया गया, फाइबर-ऑप्टिक संचार प्रणाली ने दूरसंचार उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है और सूचना युग के आगमन में एक प्रमुख भूमिका निभाई है. विद्युत संचरण पर इसके फायदे के कारण, विकसित दुनिया में कोर नेटवर्क में ताबें की तारों की जगह काफी हद तक ऑप्टिकल फाइबर ने ले ली है.

फाइबर-ऑप्टिक्स के उपयोग की संचारण प्रक्रिया में निम्नलिखित मूल चरण होते हैं: एक ट्रांसमीटर के प्रयोग को शामिल कर ऑप्टिकल संकेत बनाना, फाइबर के साथ संकेत प्रसार करना, सुनिश्चित करना कि संकेत विकृत अथवा कमजोर नहीं हो, ऑप्टिकल संकेत प्राप्त करना और उसे एक विद्युत संकेत में परिवर्तित करना.
Structure of  a fiber optic cable

इतिहास

  • 1966 में चार्ल्स के काओ  और जॉर्ज होक्कहम ने हरलो, इंग्लैंड के एसटीसी लेबोरेटरीज (STL)ऑप्टिकल फाइबर को प्रस्तावित किया, जब उन्होंने दिखाया कि 1000 dB/किमी मौजूदा ग्लास में (5-10 db/किमी कॉक्सियल केबल की तुलना में) नुकसान की वजह थी, जिसे हटाया जा सकता था.
  • 1970 में कॉर्निंग ग्लास वर्क्स के द्वारा ऑप्टिकल फाइबर का सफलतापूर्वक विकास किया गया,कम क्षीणन के साथ जो संचार के उद्देश्यों (करीब 20dB/किमी) के लिए पर्याप्त था और उसी समय में GaAs सेमीकनडक्टर लेज़र विकसित किए गए थे जो ऑप्टिक फाइबर के माध्यम से प्रकाश की लंबी दूरी के प्रसारण के लिए उपयुक्त था.
  • 1975 से शुरू हुए अनुसंधान की एक अवधि के बाद, पहली व्यावसायिक फाइबर ऑप्टिक संचार प्रणाली विकसित की गई, जिसे चारों ओर 0.8 μm के एक तरंगदैर्ध्य पर संचालित किया गया और GaAs सेमीकनडक्टर लेज़र को इस्तेमाल किया गया. यह पहली-पीढ़ी प्रणाली 45 एमबीपीएस के बिट के दर पर 10 किमी. पुनरावर्तक के अंतर के साथ परिचालित की गई. जल्द ही 22 अप्रैल 1977 को, जनरल टेलीफोन और इलेक्ट्रॉनिक्स ने पहली फाइबर ऑपटिक 6 Mbit/s के माध्यम से लाइव टेलीफोन यातायात लॉन्ग बीच़, कैलिफोर्निया भेजा.
  • 1980 के दशक में दूसरी पीढ़ी का फाइबर ऑप्टिक संचारण वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिए विकसित किया गया था, जिसे 1.3 µm, InGaAsP सेमीकनडक्टर लेज़र पर परिचालित किया गया. हालांकि शुरू में इन पद्धतियों को प्रकीर्णन द्वारा सीमित किया गया, 1981 में एकल मोड फाइबर के प्रदर्शन से प्रणाली में बहुत सुधार हुए. 1987 तक, इन प्रणालियों को 1.7 जीबी के बिट के दर पर 50 किमी. पुनरावर्तक के अंतर के साथ परिचालित किय गया.
  • पहली ट्रान्सअटलांटिक टेलीफोन केबल में ऑप्टिकल फाइबर TAT-8 का उपयोग किया गया था, जो डीसरवायर ऑपटिमाइज्ड लेज़र एमप्लिफिकेशन टेक्नोलॉजी पर आधारित था. 1988 से इसका परिचालन होने लगा.
  • तीसरी पीढ़ी के फाइबर ऑप्टिक सिस्टम 1.55 μm पर संचालित होता था और 0.2 dB/किमी. का घाटा था. तरंगदैर्ध्य पर पल्स-प्रसार के साथ परम्परागत InGaAsP सेमीकनडक्टर लेज़र के उपयोग करते हुए, कठिनाइयों के बावजूद इसे हासिल किया गया. वैज्ञानिकों ने फैलाव-स्थानांतरित फाइबर का उपयोग किया जिसे कम से कम फैलाव 1.55 µm या एकल अनुदैर्ध्य मोड द्वारा सीमित किया और इस कठिनाई से ऊबरे. इन घटनाओं ने अंततः तीसरी पीढ़ी प्रणाली को वाणिज्यिक 2.5 Gbit/s पर 100 किमी. पुनरावर्तक के अंतर के साथ संचालित करने की अनुमति दी.
Fiber Cable global network

  • चौथी पीढ़ी के फाइबर-ऑप्टिकल संचारण ऑप्टिकल प्रवर्धन का इस्तेमाल करती हैं, जिसे पुनरावर्तक को कम करने की आवश्यकता के लिए और तरंगदैर्ध्य-विभाजन बहुसंकेतन की डेटा क्षमता में वृद्धि के लिए उपयोग की जाती हैं. 1992 में इन दोनों के सुधार ने क्रांतिकारी परिणाम दिखाए जिसकी क्षमता हर 6 महीने में दोगुनी होने लगी, 2001 तक बिट दर 10 Tb/s पहुँच गया था. हाल ही में, बिट दर 14 Tbit/s ऑप्टिकल एम्पलीफायरों के उपयोग से एकल 160 किमी. लाइन के ऊपर पहुँच गया है.
  • फाइबर ऑप्टिक संचारण की पांचवीं पीढ़ी के विकास के लिए ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जिसे डब्लू डी एम प्रणाली के ऊपर तरंगदैर्ध्य की सीमा तक परिचालत किया जाता है. पारंपरिक तरंगदैर्ध्य विंडो, जो सी बैंड के नाम से जाना जात है, जिसमें तरंगदैर्ध्य रेंज 1.53-1.57 μm शामिल है और नए शुष्क फाइबर एक कम नुकसान वाला विन्डो का विस्तार 1.30-1.65 μm की सीमा पर हो रहा है. अन्य विकासों में ऐसी अवधारणा है किऑप्टिकल सोलीटन्स, पलसेस एक विशेष आकार का उपयोग करते हुए फैलाव के प्रतिकार को ननलीनियर के साथ उनके विशेष आकार में बनाए रखती हैं.
  • 1990 के दशक से 2000 तक, उद्योग प्रमोटरों और अनुसंधान कंपनियों जैसे केएमआई और आरएचके ने भविष्यवाणी की कि इंटरनेट और बैंडविड्थ उपयोग की वजह से हुए व्यावसायीकरण, उपभोक्ता मांग, मांग पर वीडियो के कारण इसकी मांग में विशाल रूप से वृद्धि होने वाली है. इंटरनेट प्रोटोकॉल डेटा यातायात तेजी से बढ़ रहा था, मूर की विधि के तहत जटिल सर्किट एकीकृत की दर से भी तेज गति से बढ़ रहा था. 2006 से डॉट कॉम के ऊपरी बुलबुले से, तथापि, उद्योग की प्रवृत्ति के मुख्य समेकन के लिए और विनिर्माण कंपनियों के अपतट के लिए लागत को कम किया गया. हाल ही में, वेरिज़ोन और एटी एंड टी ने उपभोक्ताओं के लिए घरों में विविध प्रकार के डेटा और ब्रॉडबैंड की सेवा प्रदान करने के लिए फाइबर ऑप्टिक संचारण का लाभ उठाया.


प्रोद्योगिकी

         आधुनिक फाइबर ऑप्टिक संचार प्रणालियों में आमतौर फाइबर शामिल एक ऑप्टिकल ट्रांसमीटर होता है जो ऑप्टिकल सिगनल को कन्वर्ट कर ऑप्टिकल फाइबर को भेजता है, एक केबल जिसमें ऑप्टिकल फाइबरों का एक बंडल को कराई और इमारतों के नीचे भूमिगत नलिका के माध्यम से कई एम्पलीफायरों, एक ऑप्टिकल रिसीवर जो संकेतों को बिजली के संकेत के रूप में प्राप्त करते हैं. आम तौर पर प्रेषित जानकारियां डिजिटल जानकारी होती हैं जो टेलीफोन प्रणालियों और केबल टीवी कंपनियों के लिए कंप्यूटर से उत्पन्न की जाती हैं.

अनुप्रयोग

Fiber cable Internet
         कई दूरसंचार कंपनियां टेलीफोन संकेतों को संचारित करने के लिए, इंटरनेट संचारण और केबल टीवी के सिगनल के लिए ऑप्टिकल फाइबर का उपयोग करती हैं. बहुत कम क्षीणन और हस्तक्षेप के कारण लंबी दूरी और उच्च-मांग अनुप्रयोगों में मौजूदा तांबे के तार की तुलना में ऑप्टिकल फाइबर के बहुत फायदे हैं. हालांकि, शहर के भीतर बुनियादी ढांचों का विकास अपेक्षाकृत कठिन और समय लेने वाले थे और फाइबर ऑप्टिक सिस्टम को स्थापित और संचालित करना जटिल और महंगा था. इन कठिनाइयों के कारण, फाइबर ऑप्टिक संचार प्रणालियों को प्राथमिक रूप से लंबी दूरी के अनुप्रयोगों के लिए स्थापित किए गए, जहां वे अपनी पूरी क्षमता के साथ प्रसारण के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं, वृद्धि की लागत समायोजित की गई. 2000 के बाद से फाइबर ऑप्टिक-संचार की कीमतों में काफी गिरावट आई है. नेटवर्क आधारित एक तांबे के रोल की तुलना में घर के लिए फाइबर के रोल की कीमत वर्तमान में अधिक किफायती है. अमेरिका में $ 850 प्रति ग्राहक के दर से कीमतें गिर गई हैं और नीदरलैंड जैसे देशों में जहां खुदाई की लागत कम है वहां और कम हो गई हैं.
Fiber Optic 

        1990 जब से ऑप्टिकल प्रवर्धन प्रणाली वाणिज्यिक रूप से उपलब्ध हो गई थी, दूरसंचार उद्योग ने ट्रांसओशनिक फाइबर इंटरसिटी लाइनों के संचार के लिए एक विशाल नेटवर्क रखा. 2002 तक एक अंतरमहाद्वीपीय नेटवर्क, 250,000 किलोमीटर की क्षमता वाले सबमेरीन संचार केबल 2.56 Tb/s के साथ जिसका काम पूरा हो चुका है, यद्यपि विशेषाधिकार प्राप्त जानकारी, दूरसंचार निवेश रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि नेटवर्क क्षमता 2004 के बाद से नाटकीय रूप से बढ़ गयी है.



Saturday 21 April 2012

हरित क्रांति का ‘अग्रदूत’ - नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग

DrNorman Borlaug

हरित क्रांति काअग्रदूत
वे खुद कोग्रेट डिप्रेशन की देन कहा करते थेऔर वे एक ऐसे शख्स थे जिन्होंने दुनिया की खाद्य समस्या को हल करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उन्हेंहरित क्रांति का जनकभी कहा जाता है और शांति के नोबेल पुरस्कार, प्रेजीडेंट मेडल आफ फ्रीडम और कांग्रेसनल गोल्ड मेडल के साथ ही भारत के नागरिक सम्मान पद्म विभूषण सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। जी हां, यहां बात हो रही है, नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग की।
नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग
नोबेल पुरस्कारः 1970, शांति के लिए
जन्मः 25 मार्च, 1914
मृत्युः 12 सितंबर, 2009
शुरूआती दौर
नॉर्मन का जन्म 25 मार्च, 1914 में आयोवा के क्रेस्को प्रांत में हुआ। उनके परिवार के पास 40 हेक्टेअर जमीन थी जिस पर वह मक्का, बाजरा जैसी फसलों की खेती किया करते थे। इसी तरह नॉर्मन का शुऱुआती जीवन (7-17 साल) खेतों पर ही गुजरा। मजेदार बात यह कि न्यू ओरेगॉन के जिस स्कूल में वह पढ़ा करते थे उसमें एक ही कमरा और एक ही टीचर हुआ करते थे। बोरलॉग बड़े हुए तो उनके पास कॉलेज जाने के लिए पैसे नहीं थे। लेकिन ग्रेट डिप्रेशन एरा प्रोग्राम, जिसे नेशनल यूथ एडमिनिस्ट्रेशन के नाम से भी जाना जाता है, के जरिये बोरलॉग मिनेपॉलिस की मिनेसोटा यूनिवर्सिटी में फॉरेस्टरी का अध्ययन करने लगे. उन्होंने 1942 में प्लांट पैथोलॉजी और जेनेटिक्स में पीएच.डी की डिग्री हासिल कर ली। अपने अध्ययन की बदौलत बोरलॉग का 1942 से 1944 का समय विलमिंगटन के डूपोंट में बतौर माइक्रोबायोलॉजिस्ट के काम करते हुए गुजरा।
मेक्सिको में अनुसंधान
Wheat Crops
1944 में विशेषज्ञों ने विकासशील देशों में अकाल की संभावनाओं की आशंका जताई क्योंकि वहां फसलों की अपेक्षा जनसंख्या तेजी से बढ़ रही थी। बोरलॉग ने मेकिस्को में रॉकफेलर फाउंडेशन से पूंजी प्राप्त परियोजना में काम करना शुरू कर दिया। जहां उनका काम गेहूं का उत्पादन बढ़ाने की दिशा में अनुसंधान करना था। जिसमें वे जेनेटिक्स, प्लांट ब्रीडिंग, प्लांट पैथोलॉजी, कृषि विज्ञान (एग्रोनॉमी), मृदा विज्ञान (सॉयल साइंस) और अनाज प्रौद्योगिकी पर काम कर रहे थे। इस परियोजना का उद्देश्य मेक्सिको में गेहूं उत्पादन में वृद्धि करना था क्योंकि उस समय मेक्सिको भारी मात्रा में गेहूं का आयात कर रहा था। बोरलॉग ने माना था कि मेक्सिको के शुरूआती साल काफी मुश्किलों भरे रहे। लेकिन बोरलॉग की मेहनत रंग लाई और उन्होंने पिटिक 62 और पेनजामो 62 किस्में तैयार कीं। इसने मैक्सिको के गेहूं उत्पादन के संपूर्ण परिदृश्य को ही बदल कर रख दिया। इस तरह 1944 में गेहूं की कमी की मार झेल रहे मेक्सिको में 1963 में गेहूं का उत्पादन छह गुना अधिक हो चुका था।
भारत मे हरित क्रांति में योगदान
DrNorman Borlaug In research Field
1960 के दशक के दौरान भारत में सूखे की भयानक स्थितियां पैदा हो गई थीं, जिसके चलते देश में खाद्यान्न संकट पैदा हो गया था और देश में अमेरिका से गेहूं आयात किया जा रहा था। बोरलॉग अपने साथी डॉ. रॉबर्ट ग्लेन एंडरसन के साथ 1963 में भारत आए, ताकि वह मेक्सिको में आजमाए गए अपने मॉडल को यहां भी लागू कर सकें। डॉ. एम. एस स्वामीनाथन की देख-रेख में प्रयोग का सिलसिला नई दिल्ली के पूसा स्थित इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट में उन्नत किस्म की फसलों को बोने के साथ हु्आ। इसी तरह का प्रयोग लुधियाना, पंतनगर, कानपुर, पुणे और इंदौर में भी किया गया। परिणाम बेहतरीन मिले। लेकिन कृषि की नई तकनीकों को लेकर विरोध के चलते बोरलॉग भारत में नई किस्म का रोपण नहीं कर सके। जब 1965 में सूखे के हालात और भी बदतर हो गए, उस समय सरकार ने कदम आगे बढ़ाए और गेहूं की उन्नत किस्मों की बुवाई को अपनी मंजूरी दे दी। मेक्सिको में अपनाई गई उन्नत किस्मों के बीजों और तकनीक का दक्षिण एशिया में प्रयोग कर बोरलॉग ने यहां गेहूं के उत्पादन को 1965 और 1970 के बीच दोगुना कर दिया।
Dr. Borlaug With Dr. MS Swaminathan
भारत ने भी कदम आगे बढ़ाए और मेक्सिको से मेक्सिकन गेहूं के 18,000 टन बीज आयात किए। 1968 तक यह साफ हो गया था कि भारत में गेहूं की बंपर फसल हुई है, क्योंकि इसकी कटाई के लिए खेतिहर मजदूरों की कमी पड़ गई, बैलगाड़ियां भी कम पड़ने लगीं और तो और इन्हें रखने के लिए जगह और डालने के लिए बोरियों की भी भारी कमी हो गई। कई इलाकों में तो स्कूल बंद करने पड़े और वहां अनाज को रखा गया। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एंव कृषि संगठन का कहना है कि 1961 और 2001 के बीच के 40 सालों में भारत की जनसंख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई है लेकिन इसने अपने अनाज उत्पादन को 8.7 करोड़ से 23.1 करोड़ टन पहुंचा दिया है। इसके साथ ही कृषि की जाने वाली भूमि में भी इजाफा हुआ है।
आलोचकों को जवाब
हाल के कुछ वर्षों में बोरलॉग को अपनी उच्च उत्पादन क्षमता वाली फसलों के कारण पर्यावरणविदों और सामाजिक-आर्थिक आलोचना का शिकार भी होना पड़ा है। भारत में कहा गया कि उनकी विधियों से फसलों की विविधता पर असर पड़ा है और एग्रो कैमिकल्स पर निर्भरता भी काफी बढ़ी है, जिनसे जमीन में जहर घुल जाता है और जिसका फायदा अमेरिका की बहुराष्ट्रीय कंपनिया ले रही हैं।

पर्यावरणविदों की इस लॉबी को जवाब देते हुए बोरलॉग ने कहा था, ‘पश्चिमी देशों के इस तरह के अधिकतर पर्यावरणविद् संभ्रांत हैं। जिन्होंने कभी इस बात का एहसास नहीं किया कि भूख होती क्या है। ये ब्रुसेल्स या वाशिंगटन में अपने आलीशान दफ्तरों में बैठकर लॉबी करना जानते हैं।
ऑर्गेनिक फार्मिंग की दीर्घकालिकता पर उनका कहना था कि विश्व हर साल 8.2 करोड़ टन कैमिकल फर्टीलाइजर के जरिये पौधे के विकास के लिए जरूरी नाइट्रोजन की आपूर्ति करता है। अगर इस नाइट्रोजन के स्रोत को बदला जाए तो इसके लिए तीन अरब टन मवेशियों की खाद की जरूरत होगी। इसके लिए हमें मवेशियों की मौजूदा संख्या को छह गुना बढ़ाना होगा। इससे क्या समस्या पैदा हो सकती है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। बोरलॉग बायोटेक्नोलॉजी के भी समर्थक थे।
वे एक दूरदर्शी थे तभी तो उन्होंने एक बार कहा था, ‘2050 तक विश्व के जनसंख्या के दस अरब होने का अनुमान है, ऐसे में हमें वैश्विक खाद्य उत्पादन को भी दोगुना करना होगा।