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Tuesday 31 January 2012

है नमन उनको की जो यशकाय को अमरत्व देकर इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं


मेरी यह कविता आप के बलिदान के सामने कुछ भी नहीं ... बस एक प्रणाम भर है मेरी पीढी का और हिंदी कविता का .... आप के चरणों में शत शत नमन .... आप सदा हमारे हीरो रहेंगे ...

है नमन उनको की जो यशकाय को अमरत्व देकर
इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये हैं
है नमन उस देहरी पको जिस पर तुम खेले कन्हैया
घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय ....
हमने भेजे हैं सिकन्दर सिर झुकाए मात खाऐ
हमसे भिडते हैं हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है
नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी
सिंह के दांतों से गिनती सीखने वालों के आगे
शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है
जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी
उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है
है नमन उनको की जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन
काल कऔतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये हैं
है नमन उनको की जिनके सामने बोना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये हैं
लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे
विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है
राखियों की प्रतीक्षा , सिन्दूरदानों की व्यथाऒं
देशहित प्रतिबद्ध यौवन कै सपन तुमको नमन है
बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे
पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है
है नमन उनको की जिनको काल पाकर हुआ पावन
शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये हैं
कंचनी तन, चन्दनी मन , आह, आँसू , प्यार ,सपने,
राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये

अधूरा अनसुना ही रह गया यूं प्यार का किस्सा, कभी तुम सुन नहीं पायी, कभी मैं कह नहीं पाया


जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल ऐसा इकतारा है,
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है.
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर,
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है.
जो धरती से अम्बर जोड़े , उसका नाम मोहब्बत है ,
जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम मोहब्बत है ,
कतरा कतरा सागर तक तो ,जाती है हर उम्र मगर ,
बहता दरिया वापस मोड़े , उसका नाम मोहब्बत है .
पनाहों में जो आया हो, तो उस पर वार क्या करना ?
जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर अधिकार क्या करना ?
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कशमकश में हैं,
जो हो मालूम गहराई, तो दरिया पार क्या करना ?
बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन,
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तनचंदन,
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है,
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन.
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ,
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ,
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन,
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ
बहुत बिखरा बहुत टूटा थपेड़े सह नहीं पाया,
हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया,
अधूरा अनसुना ही रह गया यूं प्यार का किस्सा,
कभी तुम सुन नहीं पायी, कभी मैं कह नहीं पाया

कोई दीवाना कहता है (कविता) / कुमार विश्वास

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!


मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!


समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!

भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!

बादड़ियो गगरिया भर दे (कविता) / कुमार विश्वास

बादड़ियो गगरिया भर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
प्यासे तन-मन-जीवन को
इस बार तो तू तर कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे

अंबर से अमृत बरसे 
तू बैठ महल मे तरसे
प्यासा ही मर जाएगा
बाहर तो आजा घर से
इस बार समन्दर अपना
बूँदों के हवाले कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे

सबकी अरदास पता है 
रब को सब खास पता है
जो पानी मे घुल जाए
बस उसको प्यास पता है
बूँदों की लड़ी बिखरा दे
आँगन मे उजाले कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे

प्यासे तन-मन-जीवन को
इस बार तू तर कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे

आग की भीख

धुँधली हुई दिशाएँ, छाने लगा कुहासा,
कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँ-सा।
कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है,
मुँह को छिपा तिमिर में क्यों तेज़ रो रहा है?

दाता, पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे,
बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे।
प्यारे स्वदेश के हित अंगार माँगता हूँ।
चढ़ती जवानियों का शृंगार माँगता हूँ।
बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है,
कोई नही बताता, किश्ती किधर चली है?
मँझधार है, भँवर है या पास है किनारा?
यह नाश आ रहा है या सौभाग्य का सितारा?
आकाश पर अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा,
भगवान, इस तरी को भरमा न दे अँधेरा।
तम वेधिनी किरण का संधान माँगता हूँ।
ध्रुव की कठिन घड़ी में, पहचान माँगता हूँ।
आगे पहाड़ को पा धारा रुकी हुई है,
बलपुंज केसरी की ग्रीवा झुकी हुई है,
अग्निस्फुलिंग रज का, बुझ ढेर हो रहा है,
है रो रही जवानी, अंधेर हो रहा है।
निर्वाक है हिमालय, गंगा डरी हुई है,
निस्तब्धता निशा की दिन में भरी हुई है।
पंचास्यनाद भीषण, विकराल माँगता हूँ।
जड़ता विनाश को फिर भूचाल माँगता हूँ।
मन की बंधी उमंगें असहाय जल रही है,
अरमान आरजू की लाशें निकल रही है।
भीगी खुली पलकों में रातें गुजारते हैं,
सोती वसुन्धरा जब तुझको पुकारते हैं,
इनके लिए कहीं से निर्भीक तेज ला दे,
पिघले हुए अनल का इनको अमृत पिला दे।
उन्माद, बेकली का उत्थान माँगता हूँ।
विस्फोट माँगता हूँ, तूफ़ान माँगता हूँ।
आँसू भरे दृगों में चिनगारियाँ सजा दे,
मेरे शमशान में आ शृंगी ज़रा बजा दे।
फिर एक तीर सीनों के आरपार कर दे,
हिमशीत प्राण में फिर अंगार स्वच्छ भर दे।
आमर्ष को जगाने वाली शिखा नई दे,
अनुभूतियाँ हृदय में दाता, अनलमयी दे।
विष का सदा लहू में संचार माँगता हूँ।
बेचैन ज़िन्दगी का मैं प्यार माँगता हूँ।
ठहरी हुई तरी को ठोकर लगा चला दे,
जो राह हो हमारी उस पर दिया जला दे।
गति में प्रभंजनों का आवेग फिर सबल दे,
इस जाँच की घड़ी में निष्ठा कड़ी, अचल दे।
हम दे चुके लहू हैं, तू देवता विभा दे,
अपने अनल विशिख से आकाश जगमगा दे।
प्यारे स्वदेश के हित वरदान माँगता हूँ।
तेरी दया विपद में भगवान माँगता हूँ।

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।


पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
पुस्तकों में है नहीं
छापी गई इसकी कहानी
हाल इसका ज्ञात होता
है न औरों की जबानी

अनगिनत राही गए
इस राह से उनका पता क्या
पर गए कुछ लोग इस पर
छोड़ पैरों की निशानी

यह निशानी मूक होकर
भी बहुत कुछ बोलती है
खोल इसका अर्थ पंथी
पंथ का अनुमान कर ले।

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
यह बुरा है या कि अच्छा
व्यर्थ दिन इस पर बिताना
अब असंभव छोड़ यह पथ
दूसरे पर पग बढ़ाना

तू इसे अच्छा समझ
यात्रा सरल इससे बनेगी
सोच मत केवल तुझे ही
यह पड़ा मन में बिठाना

हर सफल पंथी यही
विश्वास ले इस पर बढ़ा है
तू इसी पर आज अपने
चित्त का अवधान कर ले।

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
है अनिश्चित किस जगह पर
सरित गिरि गह्वर मिलेंगे
है अनिश्चित किस जगह पर
बाग वन सुंदर मिलेंगे

किस जगह यात्रा खतम हो
जाएगी यह भी अनिश्चित
है अनिश्चित कब सुमन कब
कंटकों के शर मिलेंगे

कौन सहसा छू जाएँगे
मिलेंगे कौन सहसा
आ पड़े कुछ भी रुकेगा
तू न ऐसी आन कर ले।

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।

Monday 30 January 2012

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Sunday 29 January 2012

कबूतर इश्क का उतरे तो कैसे .. . .. .

तुम्हें जीने में आसानी बहुत है ,


तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है .

ज़हर-सूली ने गाली-गोलियों ने, 


हमारी जात पहचानी बहुत है .


कबूतर इश्क का उतरे तो कैसे, 


तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है. 


इरादा कर लिया गर ख़ुदकुशी का, 


तो खुद की आखँ का पानी बहुत है.



तुम्हारे दिल की मनमानी मेरी जाँ
 ,
हमारे दिल ने भी मानी बहुत है ...."




by :Kumar Vishwas

Saturday 28 January 2012

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बातें तो तेरी फूल सी थीं मगर, सुनकर मैं पत्थर का हो गया ...


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क्या आप भी फ़ेसबुक से दुःखी हैं?, बेहद काम की 101 वेबसाइटें,इंटरनेट के बिना चलेगी रजनीकांत की वेबसाइट

क्या आप भी फ़ेसबुक से दुःखी हैं?


आजकल हर कोई फ़ेसबुक से दुःखी है. सबसे ज्यादा दुःखी तो सरकार है. सरकार फ़ेसबुक से इतना दुःखी हो चुकी है कि वो इस पर बैन करने की बात कहने लगी है. और अब तो न्यायालय भी चीनी तर्ज पर फ़ेसबुक को ब्लॉक करने की धमकियाँ देने लगी है. क्या आप भी फ़ेसबुक से दुःखी हैं?



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ये आपको सुपरस्टार रजनीकांत पर आधारित एक चुटकुला लगे लेकिन एक ऐसी वेबसाइट लॉच की गई है जो इस अभिनेता पर समर्पित है और बिना इंटरनेट कनेक्शन के चल सकती है.


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इंटरनेट के बिना चलेगी रजनीकांत की वेबसाइट


ये आपको सुपरस्टार रजनीकांत पर आधारित एक चुटकुला लगे लेकिन एक ऐसी वेबसाइट लॉच की गई है जो इस अभिनेता पर समर्पित है और बिना इंटरनेट कनेक्शन के चल सकती है.

ऑलअबॉउटरजनीकांत डॉट कोम पर जाते ही आपका स्वागत ये संदेश करता है, ”रजनीकांत एक आम इंसान नहीं हैं, ये एक साधारण वेबसाइट नहीं है. ये रजनी की शक्ति से चलती है और इस वेबसाइट से जुड़ने के लिए आप इंटरनेट कनेक्शन को बंद कर दे.”

जब इंटरनेट बंद हो जाता है तभी आप इस वेबसाइट को जाकर देख सकते हैं.

इस वेबसाइट पर जाकर रजनीकांत के शुरुआती करियर, उनकी फ़िल्मों के बारे में अंदर की ख़बरों, पर्दे के पीछे हुए सीन और रजनीकांत के चुटकुले जिसमें कहा गया है कि उनके लिए कुछ भी करना नामूमकिन नहीं है वो सब आप देख -पढ़ सकते हैं.

इस वेबसाइट को चलाने वाली कंपनी वेबचटनी के क्रिएटिव निदेशक गुरबख़्श सिंह का कहना है, ”किसी वेबसाइट को बिना इंटरनेट कनेक्शन के चलाने में रजनीकांत की अपार लोकप्रियता की मिसाल है.”

रजनीकांत का स्टाइल

वेबसाइट पर रजनीकांत के स्टाइल की झलक साफ़ देखने को मिलती है, जहां मज़ेदार गाने सुने जा सकते है. ये वेबसाइट काफ़ी रंगबिरंगी है और इस पर अजीबो-गरीब वक्तव्य भी प्रकाशित किए गए हैं.

और अगर इस वेबसाइट पर जाने के दौरान यूसर इंटरनेट से जुड़ने की कोशिश करता है तो एक संदेश आता है, ”अईयो. इसकी तो उम्मीद नहीं थी. वेबसाइट को देखने के लिए इंटरनेट बंद कर दें’.
समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए गए साक्षात्कार में वेबचटनी गुरबख़्श सिंह ने कहा है, ”इस वेबसाइट पर कई लोग आ रहे हैं, इसे हज़ारों की संख्या में हिट्स मिल रहे है और लोग सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी इस वेबसाइट के बारे में बता रहे हैं.

सिंह का कहना था कि कुछ टेस्ट के बाद हमने कोड को पता लगाया जिससे की इंटरनेट के बिना दुनिया की पहली वेबसाइट को चलाया जा सके और ये बहुत बढ़िया है और ये एक जादू जैसा है जिसपर यक़ीन करना मुश्किल है बिल्कुल रजनीकांत द्वारा किए गए स्टंट जैसा.

इस वेबसाइट पर जाने के लिए यहाँ क्लिक करे 

क्या आप भी फ़ेसबुक से दुःखी हैं?


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आजकल हर कोई फ़ेसबुक से दुःखी है. सबसे ज्यादा दुःखी तो सरकार है. सरकार फ़ेसबुक से इतना दुःखी हो चुकी है कि वो इस पर बैन करने की बात कहने लगी है. और अब तो न्यायालय भी चीनी तर्ज पर फ़ेसबुक को ब्लॉक करने की धमकियाँ देने लगी है. उधर फ़ेसबुक में घुसे पड़े रहने वाले और तमाम वजहों के अलावा इस वजह से भी दुःखी हुए जा रहे हैं कि सरकार या न्यायालय अब किसी भी दिन फ़ेसबुक पर बैन लगा देगी तो उनके अनगिनत फ़ेसबुक मित्रों, चिकोटियों, स्टेटस मैसेज, वॉल पोस्टिंग और पसंद का क्या होगा!
फ़ेसबुक से मैं तो दुःखी हूँ ही, मेरी पत्नी मुझसे ज्यादा दुःखी है. अलबत्ता दोनों के कारण जुदा जुदा हैं. फ़ेसबुक से तो मैं तब से दुःखी था जब से मैं फ़ेसबुक से जुड़ा भी नहीं था. तब जहाँ कहीँ भी जाता, लोग गर्व से बताते कि वे फ़ेसबुक पर हैं. मैं उनके गर्व के सामने निरीह हो जाता और दुःखी हो जाता. फिर पूछते – आप भी फ़ेसबुक पर हैं? और चूंकि मैं फ़ेसबुक पर नहीं होता था तो और ज्यादा दुःखी हो जाता था कि मैं कितना पिछड़ा, नॉन-टेक्नीकल आदमी हूँ कि देखो तमाम दुनिया तो फ़ेसबुक पर पहुँच चुकी है, और हम हैं कि अभी जाने कहाँ अटके हैं.
तो एक अच्छे भले दिन (पत्नी के हिसाब से एक बेहद खराब दिन) मैं भी इधर उधर से जुगत भिड़ाकर फ़ेसबुक पर आ ही गया. और, मैं फ़ेसबुक पर आ क्या गया, मेरे और ज्यादा दुःखी होने के दिन भी साथ आ गए.
मेरे फ़ेसबुक पर आने के कई कई दिनों तक मेरे पास किसी का कोई मित्र निवेदन नहीं आया. आप समझ सकते हैं कि मेरे दुखों का क्या पारावार रहा होगा. यही नहीं, मैंने दर्जनों, सैकड़ों मित्र निवेदन भेजे. मगर फ़ेसबुक में आपसी मित्रों में उलझी मित्रमंडली में से किसी ने गवारा नहीं किया कि वो मेरे मित्र निवेदन का जवाब भेजे. स्वीकारना तो खैर, दूर की बात थी. अब जब आप बड़ी आशा से मित्र निवेदन भेजें और सामने से कोई प्रतिक्रिया नहीं आए, तो आप क्या खुश होंगे? और, जब पता चले कि गली के नुक्कड़ पर चायवाले के पाँच हजार फ़ेसबुक मित्र हैं, और आप खाता खोलने के लिए भी तरस रहे हैं तो अपने दुःख की सीमा का अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं.
अब चूंकि मैं फ़ेसबुक पर आ चुका तो यहाँ थोड़ी चहल कदमी भी करने लगा. लोगों की देखा-देखी एक दिन मैंने भी अपना स्टेटस लगाया – आज मुझे जुकाम है, और मेरी नाक म्यूनिसिपल्टी के टोंटी विहीन नल की तरह बह रही है. मुझे लगा कि दूसरों के भरे पूरे फ़ेसबुक वॉल की तरह इस धांसू फ़ेसबुक स्टेटस पर टिप्पणियों की भरमार आ जाएगी और मेरा वाल भी टिप्पणियों, प्रतिटिप्पणियों से भर जाएगा. मगर मुझे तब फ़ेसबुक में टिके रहने वालों की असलियत पता चली कि उनमें जरा सा भी सेंस ऑफ़ ह्यूमर नहीं है, जब मेरे इस धांसू स्टेटस मैसेज पर एक भी टिप्पणी दर्ज नहीं हुई. और, जहाँ फ़ेसबुक के अरबों प्रयोक्ता हों, लोग बाग़ चौबीसों घंटे वहाँ पिले पड़े रहते हों, वहाँ जीरो टिप्पणी वाली स्टेटस मैसेज का मालिक क्या खुश होगा?
इसी तरह मैंने अपने वाल पर तमाम टीका टिप्पणियाँ भरीं, दूसरों के सार्वजनिक वाल पर आशा-प्रत्याशा में टीप मारे, मगर मामला वही, ढाक के तीन पात. मेरी वाल सदा सर्वदा से खाली ही बनी रही, और मुझे अच्छा खासा दुःखी करती रही.
अपना फ़ेसबुकिया जीवन संवारने व कुछ कम दुःखी होने की खातिर एक दिन मैंने कुछ टिप हासिल करने की खातिर एक अत्यंत सफल फ़ेसबुकिया से संपर्क किया. उसके पाँच हजार फ़ेसबुक मित्र थे, उसकी वॉल सदा हरी भरी रहती थी. वो एक टिप्पणी मारता था तो प्रत्युत्तर में सोलह सौ पचास प्रतिटिप्पणियाँ हासिल होती थीं. मगर जो बात उसने मुझे अपना नाम सार्वजनिक न करने की कसम देते हुए कही, वो मुझे और दुःखी कर गई. उस सफल फ़ेसबुकिये ने बताया कि उसे अपने तमाम पाँच हजार मित्रों के स्टेटस संदेश पर हाहा-हीही किस्म की टिप्पणियाँ मारनी पड़ती हैं, उनके जन्मदिनों में याद से उनके वॉल पर बधाईयाँ टिकानी पड़ती है, उनकी टिप्पणियों का जवाब देना मांगता है, उनकी चिकोटियों पर उलटे चिकोटी मारनी पड़ती है और उनमें से लोग जो दीगर लिंक टिकाते हैं, फोटो चेंपते हैं उनमें भी अपनी टिप्पणी और पसंद मारनी पड़ती है इत्यादि इत्यादि. और इन्हीं सब में दिन रात उलझ कर वो अपना चैन (माने नौकरी, प्रेमिका इत्यादि...) खो चुका है, लिहाजा आजकल बेहद दुःखी रहता है!
आह! फ़ेसबुक! तूने तो सबको दुःखी कर डाला है रे! फ़ेसबुक से गूगल, एमएसएन और याहू तो दुःखी हैं ही, क्या पता शायद खुद मार्क जुगरबर्ग भी दुःखी हो!

रात है कि दिन


पुराने जमाने की बात है. एक दिन धर्मगुरू ने अपने शिष्यों से पूछा कि यह कैसे समझते हो कि रात बीत गई है और दिन हो गया है?
एक ने कहा – मुर्गा बांग देता है तो समझो दिन हो गया.
गुरु ने कहा – गलत.
दूसरे ने सुझाया – जब बाहर अँधेरा खत्म हो जाता है.
गुरु ने कहा – गलत.
तीसरे ने सुझाया – जब हम बाहर देखते हैं तो पेड़ पीपल का है या वटवृक्ष है यह समझ में आ जाए तो समझो दिन हो गया.
गुरु ने कहा – गलत.
इस तरह से तमाम शिष्यों ने अपने तर्क रखे. परंतु गुरु किसी से भी सहमत नहीं हुए. अंत में छात्रों ने एक स्वर से कहा कि गुरु स्वयं बताएं कि दिन हो गया कैसे पता चलेगा.
“जब तुम किसी भी स्त्री या पुरुष के चेहरे को देखते हो तो उसमें यदि तुम्हें अपना भाई दिखता है या अपनी बहन नजर आती है तब तो समझो कि दिन हो गया, नहीं तो तुम सबके लिए अभी भी रात ही है.” – गुरु ने स्पष्ट किया.

मनोचिकित्सक


नसरूद्दीन को एक विचित्र बीमारी हो गई. उसके इलाज के लिए वह मनोचिकित्सक के पास गया और उसे अपनी समस्या सुनाई – “डॉक्टर, मैं पिछले महीने भर से सो नहीं पा रहा हूँ. जब मैं पलंग पर सोता हूँ तो मुझे लगता है कि पलंग के नीचे कोई है. और मैं डर कर नीचे झांकता हूं परंतु पलंग के नीचे कोई नहीं होता. फिर मैं भयभीत होकर पलंग के नीचे सोता हूं तो लगता है कि पलंग के ऊपर कोई है. मैं बहुत परेशान हूं. मेरा इलाज कर दो.”
मनोचिकित्सक ने नसरूद्दीन से कहा कि तुम्हारी समस्या बड़ी विचित्र है, और इसका इलाज महंगा है और लंबा चलेगा. हर हफ़्ते तुम्हें मेरे पास मनोचिकित्सा के लिए आना होगा, जिसकी फीस 300 रुपये होगी और इलाज कोई दो वर्ष लगातार लेना होगा. इलाज की पूरी गारंटी है.
नसरुद्दीन यह सुनकर घबराया और कल बताता हूँ कह कर वह डाक्टर के पास से चला गया. दूसरे दिन नसरूद्दीन ने डॉक्टर को फ़ोन लगाया और उसे धन्यवाद देते हुए कहा कि उसकी समस्या का इलाज हो गया है. डॉक्टर को विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने पूछा कि कैसे?
“मैंने अपने पलंग के पाए ही काट दिए हैं”. नसरूद्दीन ने खुलासा किया – “न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी!”

हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।।


 लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती।।

हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।।

नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है,



मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,

चढ़कर गिरना,गिरकर चढ़ना न अखरता है,


आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती।।
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा-जाकर खाली हाथ लौट आता है,



मिलते न सहेज के मोती पानी में,
बहता दूना उत्साह इसी हैरानी में,



मुठ्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती।।
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।।

असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो,
क्या कमी रह गयी,देखो और सुधार करो,




जबतक न सफल हो नींद-चैन को त्यागो तुम,
संघर्षों  का  मैदान  छोड़  मत  भागो  तुम,



कुछ किये बिना ही जय-जयकार नहीं होती।।
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।।