छछूंदर वैसे तो वनवासी प्राणी है, किन्तु गांव-शहरों में भी यह निवास करता है। यह दिन रात भोजन की खोज में भटकता रहता है। छछूंदर प्राय: हरे-भरे मैदानों में अपने शिकार की खोज में यत्र-तत्र सूंघता हुआ विचरण करता है और कभी-कभी उससे जा टकराता है, क्योंकि इसकी आंख बहुत ही छोटी होती हैं और इनसे लगभग कुछ नहीं दिखाई पड़ता है। यह चीते की तरह सीधे अपने शिकार छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े, तितली या झींगुर पर वार करता है। छछूंदर सर्वभक्षी है। भोजन करते समय आनंदोल्लास की उत्तेजना से इसका सारा शरीर कांपता रहता है।
छछूंदर मनुष्य के लिए काफी उपयोगी जीव है। कृषि और वनसंपदा को हानि पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़ों को यह आसानी से उदरस्थ कर लेता है। यह चूहे तक को आसानी से मार कर, उसकी हड्डी ही नहीं बालदार खाल को भी आसानी से हजम कर लेता है। जहरीले भुजंग भी इससे डरते हैं, क्योंकि वे इसका सबसे प्रिय भोजन है। छछूंदर के थूक की गिल्टियों में काले नाग के जैसा भयंकर विष पाया जाता है इसके दांत लगते ही शिकार को कुछ सूझ नहीं पड़ता। मस्तिष्क में धुंध छा जाती है। सांस लेने में कष्ट होता है इसके बाद लकवा (फालिज) पड़ जाते हैं।
जब कभी इसे किसी बड़े शत्रु से सामना हो जाता है और इसे दबोच लेता है, तो यह अपनी तंत्र शक्ति का प्रयोग करता है। इसे पेट में एक ऐसी गिल्टी होती है, जिसे यह जब चाहे अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकता है। इस गिल्टी से एक बहुत ही भयंकर गंध या गैस निकलती है, जो पलभर में इस पर आक्रमण करने वाले शिकारी जीव को पलायन करने को बाध्य कर देता है। उस गंध के कारण व शिकारी जीवन बीमार होकर या तो समर्पण कर देता है या पलायन कर जाता है।
इसकी एक और विशेषता यह है कि यह किसी से डरता नहीं है। यह साहसी भी है और गुस्सैला भी। फुर्ती का तो कहना ही क्या? यदि इसे सांस के साथ छोड़ दिया जाए, जो यह जल्द से जल्द सांप को मारकर खा जाएगा।
छछूंदर का जन्म और जीवन क्रम किसी खोखले पेड़ से शुरू होता है। उस पेड़ के कोटर में अथवा किसी गङ्ढे के सुरक्षित स्थान में जन्म लेता है। मादा छछूंदर के छोटी-छोटी मधु मक्खियों जैसे चार से दस तक बच्चे पैदा होते हैं, एक सप्ताह के भीतर घोंसले के आसपास रेंगने लगते हैं। जब ये बच्चे तीन-चार सप्ताह के हो जाते हैं तो इनकी माता इनका अन्न प्राशन संस्कार करती है और इन्हें छोटे-छोटे दीमकों का भोजन प्रदान करती है। कुछ समय उपरांत इनकी माता इन्हें अपने निवास स्थान से बाहर खदेड़ देती है और उस दिन से ये अपने पैरों पर खडे होकर भोजन की खोज में भटकने लगते हैं।
0 comments:
Post a Comment