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Saturday, 28 January 2012

मनोचिकित्सक


नसरूद्दीन को एक विचित्र बीमारी हो गई. उसके इलाज के लिए वह मनोचिकित्सक के पास गया और उसे अपनी समस्या सुनाई – “डॉक्टर, मैं पिछले महीने भर से सो नहीं पा रहा हूँ. जब मैं पलंग पर सोता हूँ तो मुझे लगता है कि पलंग के नीचे कोई है. और मैं डर कर नीचे झांकता हूं परंतु पलंग के नीचे कोई नहीं होता. फिर मैं भयभीत होकर पलंग के नीचे सोता हूं तो लगता है कि पलंग के ऊपर कोई है. मैं बहुत परेशान हूं. मेरा इलाज कर दो.”
मनोचिकित्सक ने नसरूद्दीन से कहा कि तुम्हारी समस्या बड़ी विचित्र है, और इसका इलाज महंगा है और लंबा चलेगा. हर हफ़्ते तुम्हें मेरे पास मनोचिकित्सा के लिए आना होगा, जिसकी फीस 300 रुपये होगी और इलाज कोई दो वर्ष लगातार लेना होगा. इलाज की पूरी गारंटी है.
नसरुद्दीन यह सुनकर घबराया और कल बताता हूँ कह कर वह डाक्टर के पास से चला गया. दूसरे दिन नसरूद्दीन ने डॉक्टर को फ़ोन लगाया और उसे धन्यवाद देते हुए कहा कि उसकी समस्या का इलाज हो गया है. डॉक्टर को विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने पूछा कि कैसे?
“मैंने अपने पलंग के पाए ही काट दिए हैं”. नसरूद्दीन ने खुलासा किया – “न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी!”

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