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Saturday, 28 January 2012

रात है कि दिन


पुराने जमाने की बात है. एक दिन धर्मगुरू ने अपने शिष्यों से पूछा कि यह कैसे समझते हो कि रात बीत गई है और दिन हो गया है?
एक ने कहा – मुर्गा बांग देता है तो समझो दिन हो गया.
गुरु ने कहा – गलत.
दूसरे ने सुझाया – जब बाहर अँधेरा खत्म हो जाता है.
गुरु ने कहा – गलत.
तीसरे ने सुझाया – जब हम बाहर देखते हैं तो पेड़ पीपल का है या वटवृक्ष है यह समझ में आ जाए तो समझो दिन हो गया.
गुरु ने कहा – गलत.
इस तरह से तमाम शिष्यों ने अपने तर्क रखे. परंतु गुरु किसी से भी सहमत नहीं हुए. अंत में छात्रों ने एक स्वर से कहा कि गुरु स्वयं बताएं कि दिन हो गया कैसे पता चलेगा.
“जब तुम किसी भी स्त्री या पुरुष के चेहरे को देखते हो तो उसमें यदि तुम्हें अपना भाई दिखता है या अपनी बहन नजर आती है तब तो समझो कि दिन हो गया, नहीं तो तुम सबके लिए अभी भी रात ही है.” – गुरु ने स्पष्ट किया.

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