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Sunday, 22 April 2012

फाइबर-ऑप्टिक संचारण

Structure of  a fiber optic cable
   फाइबर-ऑप्टिक संचारण एक प्रणाली है जिसमें सूचनाओं की जानकारी एक स्थान से दूसरे स्थान में ऑप्टिकल फाइबर के माध्यम से प्रकाश बिन्दुओं के रूप में भेजी जाती हैं. प्रकाश एक विद्युत चुम्बकीय तरंग वाहक विकसित करता है जो विधिवत् रूप से जानकारी को साथ ले जाते हैं. 1970 के दशक में इसे सबसे पहले विकसित किया गया, फाइबर-ऑप्टिक संचार प्रणाली ने दूरसंचार उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है और सूचना युग के आगमन में एक प्रमुख भूमिका निभाई है. विद्युत संचरण पर इसके फायदे के कारण, विकसित दुनिया में कोर नेटवर्क में ताबें की तारों की जगह काफी हद तक ऑप्टिकल फाइबर ने ले ली है.

फाइबर-ऑप्टिक्स के उपयोग की संचारण प्रक्रिया में निम्नलिखित मूल चरण होते हैं: एक ट्रांसमीटर के प्रयोग को शामिल कर ऑप्टिकल संकेत बनाना, फाइबर के साथ संकेत प्रसार करना, सुनिश्चित करना कि संकेत विकृत अथवा कमजोर नहीं हो, ऑप्टिकल संकेत प्राप्त करना और उसे एक विद्युत संकेत में परिवर्तित करना.
Structure of  a fiber optic cable

इतिहास

  • 1966 में चार्ल्स के काओ  और जॉर्ज होक्कहम ने हरलो, इंग्लैंड के एसटीसी लेबोरेटरीज (STL)ऑप्टिकल फाइबर को प्रस्तावित किया, जब उन्होंने दिखाया कि 1000 dB/किमी मौजूदा ग्लास में (5-10 db/किमी कॉक्सियल केबल की तुलना में) नुकसान की वजह थी, जिसे हटाया जा सकता था.
  • 1970 में कॉर्निंग ग्लास वर्क्स के द्वारा ऑप्टिकल फाइबर का सफलतापूर्वक विकास किया गया,कम क्षीणन के साथ जो संचार के उद्देश्यों (करीब 20dB/किमी) के लिए पर्याप्त था और उसी समय में GaAs सेमीकनडक्टर लेज़र विकसित किए गए थे जो ऑप्टिक फाइबर के माध्यम से प्रकाश की लंबी दूरी के प्रसारण के लिए उपयुक्त था.
  • 1975 से शुरू हुए अनुसंधान की एक अवधि के बाद, पहली व्यावसायिक फाइबर ऑप्टिक संचार प्रणाली विकसित की गई, जिसे चारों ओर 0.8 μm के एक तरंगदैर्ध्य पर संचालित किया गया और GaAs सेमीकनडक्टर लेज़र को इस्तेमाल किया गया. यह पहली-पीढ़ी प्रणाली 45 एमबीपीएस के बिट के दर पर 10 किमी. पुनरावर्तक के अंतर के साथ परिचालित की गई. जल्द ही 22 अप्रैल 1977 को, जनरल टेलीफोन और इलेक्ट्रॉनिक्स ने पहली फाइबर ऑपटिक 6 Mbit/s के माध्यम से लाइव टेलीफोन यातायात लॉन्ग बीच़, कैलिफोर्निया भेजा.
  • 1980 के दशक में दूसरी पीढ़ी का फाइबर ऑप्टिक संचारण वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिए विकसित किया गया था, जिसे 1.3 µm, InGaAsP सेमीकनडक्टर लेज़र पर परिचालित किया गया. हालांकि शुरू में इन पद्धतियों को प्रकीर्णन द्वारा सीमित किया गया, 1981 में एकल मोड फाइबर के प्रदर्शन से प्रणाली में बहुत सुधार हुए. 1987 तक, इन प्रणालियों को 1.7 जीबी के बिट के दर पर 50 किमी. पुनरावर्तक के अंतर के साथ परिचालित किय गया.
  • पहली ट्रान्सअटलांटिक टेलीफोन केबल में ऑप्टिकल फाइबर TAT-8 का उपयोग किया गया था, जो डीसरवायर ऑपटिमाइज्ड लेज़र एमप्लिफिकेशन टेक्नोलॉजी पर आधारित था. 1988 से इसका परिचालन होने लगा.
  • तीसरी पीढ़ी के फाइबर ऑप्टिक सिस्टम 1.55 μm पर संचालित होता था और 0.2 dB/किमी. का घाटा था. तरंगदैर्ध्य पर पल्स-प्रसार के साथ परम्परागत InGaAsP सेमीकनडक्टर लेज़र के उपयोग करते हुए, कठिनाइयों के बावजूद इसे हासिल किया गया. वैज्ञानिकों ने फैलाव-स्थानांतरित फाइबर का उपयोग किया जिसे कम से कम फैलाव 1.55 µm या एकल अनुदैर्ध्य मोड द्वारा सीमित किया और इस कठिनाई से ऊबरे. इन घटनाओं ने अंततः तीसरी पीढ़ी प्रणाली को वाणिज्यिक 2.5 Gbit/s पर 100 किमी. पुनरावर्तक के अंतर के साथ संचालित करने की अनुमति दी.
Fiber Cable global network

  • चौथी पीढ़ी के फाइबर-ऑप्टिकल संचारण ऑप्टिकल प्रवर्धन का इस्तेमाल करती हैं, जिसे पुनरावर्तक को कम करने की आवश्यकता के लिए और तरंगदैर्ध्य-विभाजन बहुसंकेतन की डेटा क्षमता में वृद्धि के लिए उपयोग की जाती हैं. 1992 में इन दोनों के सुधार ने क्रांतिकारी परिणाम दिखाए जिसकी क्षमता हर 6 महीने में दोगुनी होने लगी, 2001 तक बिट दर 10 Tb/s पहुँच गया था. हाल ही में, बिट दर 14 Tbit/s ऑप्टिकल एम्पलीफायरों के उपयोग से एकल 160 किमी. लाइन के ऊपर पहुँच गया है.
  • फाइबर ऑप्टिक संचारण की पांचवीं पीढ़ी के विकास के लिए ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जिसे डब्लू डी एम प्रणाली के ऊपर तरंगदैर्ध्य की सीमा तक परिचालत किया जाता है. पारंपरिक तरंगदैर्ध्य विंडो, जो सी बैंड के नाम से जाना जात है, जिसमें तरंगदैर्ध्य रेंज 1.53-1.57 μm शामिल है और नए शुष्क फाइबर एक कम नुकसान वाला विन्डो का विस्तार 1.30-1.65 μm की सीमा पर हो रहा है. अन्य विकासों में ऐसी अवधारणा है किऑप्टिकल सोलीटन्स, पलसेस एक विशेष आकार का उपयोग करते हुए फैलाव के प्रतिकार को ननलीनियर के साथ उनके विशेष आकार में बनाए रखती हैं.
  • 1990 के दशक से 2000 तक, उद्योग प्रमोटरों और अनुसंधान कंपनियों जैसे केएमआई और आरएचके ने भविष्यवाणी की कि इंटरनेट और बैंडविड्थ उपयोग की वजह से हुए व्यावसायीकरण, उपभोक्ता मांग, मांग पर वीडियो के कारण इसकी मांग में विशाल रूप से वृद्धि होने वाली है. इंटरनेट प्रोटोकॉल डेटा यातायात तेजी से बढ़ रहा था, मूर की विधि के तहत जटिल सर्किट एकीकृत की दर से भी तेज गति से बढ़ रहा था. 2006 से डॉट कॉम के ऊपरी बुलबुले से, तथापि, उद्योग की प्रवृत्ति के मुख्य समेकन के लिए और विनिर्माण कंपनियों के अपतट के लिए लागत को कम किया गया. हाल ही में, वेरिज़ोन और एटी एंड टी ने उपभोक्ताओं के लिए घरों में विविध प्रकार के डेटा और ब्रॉडबैंड की सेवा प्रदान करने के लिए फाइबर ऑप्टिक संचारण का लाभ उठाया.


प्रोद्योगिकी

         आधुनिक फाइबर ऑप्टिक संचार प्रणालियों में आमतौर फाइबर शामिल एक ऑप्टिकल ट्रांसमीटर होता है जो ऑप्टिकल सिगनल को कन्वर्ट कर ऑप्टिकल फाइबर को भेजता है, एक केबल जिसमें ऑप्टिकल फाइबरों का एक बंडल को कराई और इमारतों के नीचे भूमिगत नलिका के माध्यम से कई एम्पलीफायरों, एक ऑप्टिकल रिसीवर जो संकेतों को बिजली के संकेत के रूप में प्राप्त करते हैं. आम तौर पर प्रेषित जानकारियां डिजिटल जानकारी होती हैं जो टेलीफोन प्रणालियों और केबल टीवी कंपनियों के लिए कंप्यूटर से उत्पन्न की जाती हैं.

अनुप्रयोग

Fiber cable Internet
         कई दूरसंचार कंपनियां टेलीफोन संकेतों को संचारित करने के लिए, इंटरनेट संचारण और केबल टीवी के सिगनल के लिए ऑप्टिकल फाइबर का उपयोग करती हैं. बहुत कम क्षीणन और हस्तक्षेप के कारण लंबी दूरी और उच्च-मांग अनुप्रयोगों में मौजूदा तांबे के तार की तुलना में ऑप्टिकल फाइबर के बहुत फायदे हैं. हालांकि, शहर के भीतर बुनियादी ढांचों का विकास अपेक्षाकृत कठिन और समय लेने वाले थे और फाइबर ऑप्टिक सिस्टम को स्थापित और संचालित करना जटिल और महंगा था. इन कठिनाइयों के कारण, फाइबर ऑप्टिक संचार प्रणालियों को प्राथमिक रूप से लंबी दूरी के अनुप्रयोगों के लिए स्थापित किए गए, जहां वे अपनी पूरी क्षमता के साथ प्रसारण के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं, वृद्धि की लागत समायोजित की गई. 2000 के बाद से फाइबर ऑप्टिक-संचार की कीमतों में काफी गिरावट आई है. नेटवर्क आधारित एक तांबे के रोल की तुलना में घर के लिए फाइबर के रोल की कीमत वर्तमान में अधिक किफायती है. अमेरिका में $ 850 प्रति ग्राहक के दर से कीमतें गिर गई हैं और नीदरलैंड जैसे देशों में जहां खुदाई की लागत कम है वहां और कम हो गई हैं.
Fiber Optic 

        1990 जब से ऑप्टिकल प्रवर्धन प्रणाली वाणिज्यिक रूप से उपलब्ध हो गई थी, दूरसंचार उद्योग ने ट्रांसओशनिक फाइबर इंटरसिटी लाइनों के संचार के लिए एक विशाल नेटवर्क रखा. 2002 तक एक अंतरमहाद्वीपीय नेटवर्क, 250,000 किलोमीटर की क्षमता वाले सबमेरीन संचार केबल 2.56 Tb/s के साथ जिसका काम पूरा हो चुका है, यद्यपि विशेषाधिकार प्राप्त जानकारी, दूरसंचार निवेश रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि नेटवर्क क्षमता 2004 के बाद से नाटकीय रूप से बढ़ गयी है.



Saturday, 21 April 2012

हरित क्रांति का ‘अग्रदूत’ - नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग

DrNorman Borlaug

हरित क्रांति काअग्रदूत
वे खुद कोग्रेट डिप्रेशन की देन कहा करते थेऔर वे एक ऐसे शख्स थे जिन्होंने दुनिया की खाद्य समस्या को हल करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उन्हेंहरित क्रांति का जनकभी कहा जाता है और शांति के नोबेल पुरस्कार, प्रेजीडेंट मेडल आफ फ्रीडम और कांग्रेसनल गोल्ड मेडल के साथ ही भारत के नागरिक सम्मान पद्म विभूषण सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। जी हां, यहां बात हो रही है, नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग की।
नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग
नोबेल पुरस्कारः 1970, शांति के लिए
जन्मः 25 मार्च, 1914
मृत्युः 12 सितंबर, 2009
शुरूआती दौर
नॉर्मन का जन्म 25 मार्च, 1914 में आयोवा के क्रेस्को प्रांत में हुआ। उनके परिवार के पास 40 हेक्टेअर जमीन थी जिस पर वह मक्का, बाजरा जैसी फसलों की खेती किया करते थे। इसी तरह नॉर्मन का शुऱुआती जीवन (7-17 साल) खेतों पर ही गुजरा। मजेदार बात यह कि न्यू ओरेगॉन के जिस स्कूल में वह पढ़ा करते थे उसमें एक ही कमरा और एक ही टीचर हुआ करते थे। बोरलॉग बड़े हुए तो उनके पास कॉलेज जाने के लिए पैसे नहीं थे। लेकिन ग्रेट डिप्रेशन एरा प्रोग्राम, जिसे नेशनल यूथ एडमिनिस्ट्रेशन के नाम से भी जाना जाता है, के जरिये बोरलॉग मिनेपॉलिस की मिनेसोटा यूनिवर्सिटी में फॉरेस्टरी का अध्ययन करने लगे. उन्होंने 1942 में प्लांट पैथोलॉजी और जेनेटिक्स में पीएच.डी की डिग्री हासिल कर ली। अपने अध्ययन की बदौलत बोरलॉग का 1942 से 1944 का समय विलमिंगटन के डूपोंट में बतौर माइक्रोबायोलॉजिस्ट के काम करते हुए गुजरा।
मेक्सिको में अनुसंधान
Wheat Crops
1944 में विशेषज्ञों ने विकासशील देशों में अकाल की संभावनाओं की आशंका जताई क्योंकि वहां फसलों की अपेक्षा जनसंख्या तेजी से बढ़ रही थी। बोरलॉग ने मेकिस्को में रॉकफेलर फाउंडेशन से पूंजी प्राप्त परियोजना में काम करना शुरू कर दिया। जहां उनका काम गेहूं का उत्पादन बढ़ाने की दिशा में अनुसंधान करना था। जिसमें वे जेनेटिक्स, प्लांट ब्रीडिंग, प्लांट पैथोलॉजी, कृषि विज्ञान (एग्रोनॉमी), मृदा विज्ञान (सॉयल साइंस) और अनाज प्रौद्योगिकी पर काम कर रहे थे। इस परियोजना का उद्देश्य मेक्सिको में गेहूं उत्पादन में वृद्धि करना था क्योंकि उस समय मेक्सिको भारी मात्रा में गेहूं का आयात कर रहा था। बोरलॉग ने माना था कि मेक्सिको के शुरूआती साल काफी मुश्किलों भरे रहे। लेकिन बोरलॉग की मेहनत रंग लाई और उन्होंने पिटिक 62 और पेनजामो 62 किस्में तैयार कीं। इसने मैक्सिको के गेहूं उत्पादन के संपूर्ण परिदृश्य को ही बदल कर रख दिया। इस तरह 1944 में गेहूं की कमी की मार झेल रहे मेक्सिको में 1963 में गेहूं का उत्पादन छह गुना अधिक हो चुका था।
भारत मे हरित क्रांति में योगदान
DrNorman Borlaug In research Field
1960 के दशक के दौरान भारत में सूखे की भयानक स्थितियां पैदा हो गई थीं, जिसके चलते देश में खाद्यान्न संकट पैदा हो गया था और देश में अमेरिका से गेहूं आयात किया जा रहा था। बोरलॉग अपने साथी डॉ. रॉबर्ट ग्लेन एंडरसन के साथ 1963 में भारत आए, ताकि वह मेक्सिको में आजमाए गए अपने मॉडल को यहां भी लागू कर सकें। डॉ. एम. एस स्वामीनाथन की देख-रेख में प्रयोग का सिलसिला नई दिल्ली के पूसा स्थित इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट में उन्नत किस्म की फसलों को बोने के साथ हु्आ। इसी तरह का प्रयोग लुधियाना, पंतनगर, कानपुर, पुणे और इंदौर में भी किया गया। परिणाम बेहतरीन मिले। लेकिन कृषि की नई तकनीकों को लेकर विरोध के चलते बोरलॉग भारत में नई किस्म का रोपण नहीं कर सके। जब 1965 में सूखे के हालात और भी बदतर हो गए, उस समय सरकार ने कदम आगे बढ़ाए और गेहूं की उन्नत किस्मों की बुवाई को अपनी मंजूरी दे दी। मेक्सिको में अपनाई गई उन्नत किस्मों के बीजों और तकनीक का दक्षिण एशिया में प्रयोग कर बोरलॉग ने यहां गेहूं के उत्पादन को 1965 और 1970 के बीच दोगुना कर दिया।
Dr. Borlaug With Dr. MS Swaminathan
भारत ने भी कदम आगे बढ़ाए और मेक्सिको से मेक्सिकन गेहूं के 18,000 टन बीज आयात किए। 1968 तक यह साफ हो गया था कि भारत में गेहूं की बंपर फसल हुई है, क्योंकि इसकी कटाई के लिए खेतिहर मजदूरों की कमी पड़ गई, बैलगाड़ियां भी कम पड़ने लगीं और तो और इन्हें रखने के लिए जगह और डालने के लिए बोरियों की भी भारी कमी हो गई। कई इलाकों में तो स्कूल बंद करने पड़े और वहां अनाज को रखा गया। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एंव कृषि संगठन का कहना है कि 1961 और 2001 के बीच के 40 सालों में भारत की जनसंख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई है लेकिन इसने अपने अनाज उत्पादन को 8.7 करोड़ से 23.1 करोड़ टन पहुंचा दिया है। इसके साथ ही कृषि की जाने वाली भूमि में भी इजाफा हुआ है।
आलोचकों को जवाब
हाल के कुछ वर्षों में बोरलॉग को अपनी उच्च उत्पादन क्षमता वाली फसलों के कारण पर्यावरणविदों और सामाजिक-आर्थिक आलोचना का शिकार भी होना पड़ा है। भारत में कहा गया कि उनकी विधियों से फसलों की विविधता पर असर पड़ा है और एग्रो कैमिकल्स पर निर्भरता भी काफी बढ़ी है, जिनसे जमीन में जहर घुल जाता है और जिसका फायदा अमेरिका की बहुराष्ट्रीय कंपनिया ले रही हैं।

पर्यावरणविदों की इस लॉबी को जवाब देते हुए बोरलॉग ने कहा था, ‘पश्चिमी देशों के इस तरह के अधिकतर पर्यावरणविद् संभ्रांत हैं। जिन्होंने कभी इस बात का एहसास नहीं किया कि भूख होती क्या है। ये ब्रुसेल्स या वाशिंगटन में अपने आलीशान दफ्तरों में बैठकर लॉबी करना जानते हैं।
ऑर्गेनिक फार्मिंग की दीर्घकालिकता पर उनका कहना था कि विश्व हर साल 8.2 करोड़ टन कैमिकल फर्टीलाइजर के जरिये पौधे के विकास के लिए जरूरी नाइट्रोजन की आपूर्ति करता है। अगर इस नाइट्रोजन के स्रोत को बदला जाए तो इसके लिए तीन अरब टन मवेशियों की खाद की जरूरत होगी। इसके लिए हमें मवेशियों की मौजूदा संख्या को छह गुना बढ़ाना होगा। इससे क्या समस्या पैदा हो सकती है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। बोरलॉग बायोटेक्नोलॉजी के भी समर्थक थे।
वे एक दूरदर्शी थे तभी तो उन्होंने एक बार कहा था, ‘2050 तक विश्व के जनसंख्या के दस अरब होने का अनुमान है, ऐसे में हमें वैश्विक खाद्य उत्पादन को भी दोगुना करना होगा।