लाल रंग की रोशनी जो फैलती नहीं और सीधी निकल जाती है. लेज़र किरणों के बिना आज जीवन की कल्पना करना ही मुश्किल है. हमें भले ही इसका अहसास ना हो परंतु हमारे रोजमर्रा के जीवन में हम कई बार लेज़र किरण तकनीक का तथा उस तकनीक से बनी चीजों का इस्तेमाल करते हैं, कभी जाने में कभी अनजाने में.
सुपरमार्केट के कैशियर के बारकोड रीडर से लेकर सैन्य प्रतिष्ठानों के जटील हथियारों तक लेज़र तकनीक का इस्तेमाल होता है और यही इसकी विशेषता भी है. अपने जन्म के 50 वर्षों में लेज़र ने अपनी उपयोगिता को साबित कर दिया है.
लेजर किरण की खोज करने वाले छायाकार थिओडोर माइमैन के लिए यह एक सयोंग ही था. माइमैन के कैमरे के लैंस के कोइल के ऊपर रूबी का एक टुकड़ा रखने पर एक लाल रंग की रोशनी निकली. थिओडोर ने ह्यूज़स रिसर्च लैबोरेटरी में इस पर और अध्ययन किया. उन्होनें दिखाया कि किसी बल्ब के फ्लैश से रूबी के पतले सरिए को चार्ज किया जा सकता है और ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है. इससे लाल रंग की शुद्ध रोशनी निकलती है जिसकी तरंगे एक समान रूप और अंतराल से प्रवाहित होती हैं और एक सीधी रेखा में चलती है.
चुँकि ये किरणें अत्यंत शक्तिशाली थी और रेजर ब्लेड में भी छेद बना सकती थी इसलिए भौतिकशाष्त्रियों ने इसकी ताकत को जीलेट में मापना शुरू किया.
लेज़र के आविष्कार के तुरंत बाद से ही उद्योगपतियों से लेकर सैन्य प्रतिष्ठानों की रूचि इस क्षैत्र में बढ गई. यहाँ तक कि कॉमिकों के खलनायक भी अब लेज़र बंदूको का इस्तेमाल करने लगे. वैज्ञानिकों और इंजीनियरों में होड़ से मच गई कि इस तकनीक का इस्तेमाल कहाँ कहाँ और किस तरह से हो सकता है.
1969 में एमेट लीथ और ज्यूरीस उपानिक्स ने लेज़र तकनीक की सहायता से त्रिआयामी होलोग्राफिक चित्र बनाया. इसके लिए दो अलग अलग शक्ति की लेजर किरणों का इस्तेमाल किया गया था. इससे तैयार चित्र अधिक सटीक था और उसकी नकली प्रतिकृति बनाना लगभग असम्भव था.
इसके अलावा अन्य कई यंत्रों, मशीनों, गैजेटों को बनाने में लेजर तकनीक का इस्तेमाल होने लग गया. आज शायद ही कोई ऐसा क्षैत्र हो जहाँ लेजर तकनीक का इस्तेमाल ना होता हो.
खेलकूद की बात करें तो स्केटिंग जैसे खेल में खिलाड़ी फर्श पर मौजूद लेज़र बीम से दिशा निर्देश प्राप्त करते हैं. उद्योगों की बात करें तो लेजर किरणों की सहायता से छोटी छोटी मशीनों को सटीक आकार देना सम्भव हुआ है. इससे अत्यंत पतले ओप्टिकल फाइबर केबल बनाने में सफलता पाई गई है. चिकित्सा के क्षैत्र में लेज़र किरणों ने तो काफी मदद की है. 1962 में लेज़र की सहायता से पहली नैत्र शल्य क्रिया की गई थी. और अब पथरी से लेकर कैंसर तक के रोगों के इलाज में इसकी सहायता ली जाती है.
सैन्य गतिविधियों में भी लेजर किरणों का इस्तेमाल होता है, चाहे वह लेजर गाइडेड बम हो या बारूदी सुरंगों की पहचान करने वाले यंत्र. अंतरिक्ष अनुसंधान में भी इस तकनीक का इस्तेमाल होता है और मनोरंजन के क्षैत्र में भी. आज किसी भी खेल तथा अन्य आयोजन के उद्घाटन समारोह में लेजर शो का आयोजन आम बात है.
कहने का अर्थ यह कि लेज़र तकनीक एक ऐसी तकनीक के रूप में विकसित हुई है जिसके बिना अब जीवन की कल्पना लगभग असम्भव है. परंतु अब यह हमारे जीवन से इस तरह से जुड़ गई है कि हमें इसके महत्व का अहसास ही नहीं होता.
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