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Tuesday, 27 March 2012

आज के ज़माने के सिकंदर हैं तेंदुलकर


Sachin Tendulkar
सचिन के लक्ष्यों को लेकर सचिन से अधिक उनके फैन पगलाए हुए थे.
 हर लक्ष्य के बाद और नए लक्ष्य तय कर दिए जाते थे.
बीसवीं सदी की शुरुआत यानी 1900 के आसपास ये माना जाता था कि भौतिक शास्त्र अपने चरम पर पहुंच चुका है और जो खोजा जा सकता था वो खोजा जा चुका है.

अब जो खोजा जाएगा वो बस छोटी मोटी बात होगी यानि विज्ञान पूर्ण हो गया है, और लगभग इसी समय अल्बर्ट आइंस्टीन ने क्वांटम फीजिक्स और सापेक्षता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसने पूरे भौतिक शास्त्र को उलट पुलट कर रख दिया.
खेल के रिकार्ड भी कुछ ऐसे ही होते हैं.
विशेषज्ञ तय करते हैं कि अब इससे बेहतर नहीं हो सकता और फिर ऐसा हो जाता है.
जब बॉब बीमन ने मेक्सिको ओलंपिक में 8.90 मीटर की लंबी कूद लगाई थी तो कई लोगों को लगा था कि ये रिकार्ड अब नहीं टूटेगा. यह 25 साल भी नहीं चला.

क्रिकेट की बात

क्रिकेट के रिकार्ड की बात करें तो दो रिकार्ड हमेशा याद किए जाते हैं.
सर डॉन ब्रैडमैन का करियर का औसत 99.94 और जिम लेकर के एक ही मैच में 90 रन देकर लिए गए 19 विकेट
हाल ही में एक और रिकार्ड बना मुरलीधरन के टेस्ट क्रिकेट में 800 विकेट.
अब इसी श्रृंखला में एक और नाम जुड़ा है- अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सचिन का सौंवा शतक.
रिकार्ड कितना बड़ा है इसका अंदाज़ा लगाने के लिए देखिए, दूसरे नंबर पर मौजूद रिकी पोंटिंग को जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कुल शतक लगाए हैं 71.
टेस्ट क्रिकेट में सचिन के 52 शतकों के बाद जैक्स कैलिस का नंबर है जिन्होंने 42 टेस्ट शतक लगाए हैं.
वनडे में सचिन के 49 शतकों के बाद दूसरे नंबर पर रिकी पोंटिंग हैं जिन्होंने मात्र 30 शतक लगाए हैं.
क्या इसकी कोई तुलना हो सकती है?

फैन पगलाए

तेंदुलकर ने जब 16 साल की उम्र में अपना करियर शुरु किया था तो 35 टेस्ट शतक बनाना संतोषजनक माना जाता था और वनडे में 25 शतक बन जाएं तो 60 अंतरराष्ट्रीय शतक अच्छा लगता था.
ऐसा लगता है कि सचिन के लक्ष्यों को लेकर सचिन से अधिक उनके फैन पगलाए हुए थे. हर लक्ष्य के बाद और नए लक्ष्य तय कर दिए जाते थे.
अब जबकि टेस्ट मैचों के भविष्य पर ही बहस चल रही है जहां टेस्ट मैचों की संख्या कम किए जाने पर विचार हो रहा है तो फिर यह बात बेकार लगती है कि रिकार्ड टूटने के लिए ही बनते हैं.
किसी मर्डर मिस्ट्री की तरह बल्लेबाज़ों का भी अपना उद्देश्य होता है, मौके होते हैं और लक्ष्य होते हैं.
फिर सवाल उम्र का भी था. इच्छा ज़रुर थी लेकिन 40 की उम्र में शरीर साथ नहीं देता.

'सौम्य' तेंदुलकर


यह देखना आसान है कि 99.94 के टेस्ट औसत को पार कर पाना क्यों मुश्किल है.ब्रैडमैन के बाद दूसरे नंबर पर हर्बर्ट सटक्लिफ हैं जिनका औसत 60.73 है. ये उन खिलाड़ियों के औसत की बात हो रही है जिन्होंने 50 से अधिक टेस्ट खेले हैं.
लेकर की बात करें तो ये भी मुश्किल है. एक ही मैच में दो बार दस दस विकेट लेना असंभव ही लगता है. लेकर के बाद दूसरे नंबर पर हैं सिड बार्नेस जिन्होंने 159 रन देकर 17 विकेट लिए हैं.
तेंदुलकर सौम्य है लेकिन वो आज के ज़माने के सिकंदर हैं जिनके लिए कोई दुनिया जीतना बाकी नहीं रह गया है.
Sachin's 100 th century
सचिन ने एक दिवसीय क्रिकेट में 49 और टेस्ट क्रिकेट में 51 शतक लगाए हैं
लेकिन किसी के लिए भी 100 अंतरराष्ट्रीय शतक बनाना मुश्किल है जिसके लिए करियर जल्दी शुरु करना होगा और कम से कम दो दशक खेलना होगा जिसमें हर साल कम से कम पांच शतक लगाने होंगे. ये असंभव नहीं तो
 मुश्किल ज़रुर दिखता है.
भारतीय क्रिकेट जोश पर टिका है जहां भावनाएं बहुत जल्दी आहत हो जाती हैं. खिलाड़ियों को भगवान माना जाता है. रोमांस यथार्थ पर भारी है. भावनाएं तर्क और बहस को पार कर जाती हैं.
यही कारण है कि हार में तेंदुलकर के शतक का जश्न मनाया जाता है...जीत में 40 रन बनाएं सचिन तो जश्न का मज़ा कम होता है.
शायद तभी लोगों को सचिन के 99 अंतरराष्ट्रीय शतकों में से सिर्फ 53 शतकों से भारत को जीत मिली है.
लेकिन आज... बात कुछ और थी.
हेमिंग्वे के शब्दों में कहें तो आपकी किस्मत अच्छी है अगर आपने तेंदुलकर के करियर को देखा है क्योंकि जिंदगी में आप कहीं भी जाएंगे तेंदुलकर आपके साथ रहेंगे.
...और ये एहसास तेंदुलकर की सबसे बड़ी उपलब्धि है.

From :-BBC Hindi

Thursday, 22 March 2012

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Monday, 19 March 2012

गीदड़ या सियार


इस जानवर को प्राय: अनेक लोगों ने देखा होगा, पर इसकी बोली से परिचित होनेवालों से परिचित होनेवालों की संख्या देखनेवालों से अधिक होगी। शीत ऋतु में प्रतिदिन अँधेरा होते ही इसकी बोली सुनाई देती है। आरंभ में एक गीदड़ हुआ हुआ बोलते है, फिर अन्य सब उसे दुहराते हैं और अंत में चिल्लाना चीखने में बदल जाता है।
गीदड़ की लंबाई दो ढ़ाई फुट और ऊँचाई सवा फुट के लगभग, पूँछ झबरी, थूथन लंबा और रंग भूरा होता। यह सर्वभक्षी है तथा सड़े गले मांस के अतिरिक्त छोटे मोटे जीवों का शिकार करता है। यह गन्ना, ईख, कंदमूल, भुट्टा आदि खाकर कृषकों को क्षति पहुँचाता है।
गीदड़ झुंडो में रहते हैं। ये दिन में झाड़ियों और काँटों में छिपे रहते हैं और संध्या होते ही आहार की खोज में निकल पड़ते हैं। कभी कभी दिन में भी दिखाई पड़ते हैं।
यह एक विशेष व सबसे रहस्यमयी परभक्षी है और कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के परभक्षियों के वरीयता क्रम मेंकाफ़ी निम्न स्थान है। अपनी हरफनमौला वाली विशेषता के कारण वह कान्हा पार्क के पारिस्थितिकी-तंत्र में विस्तृत क्षेत्रों में अपने निकट स्थापित करने में सफल हुआ है।
कभी कभी गीदड़ अकेला रहने लगता है। इस समय वह गाँव के पास छिपकर रहता है और अवसर पाते ही गाँव के पालतू कुत्ते, बकरी, भेड़ के बच्चे, मुर्गियों और कभी कभी आदमी के बच्चे को भी उठा ले जाता है। यह कायर और मक्कार, किंतु चालाक जानवर है। मादा एक बार में तीन से पाँच बच्चे जनती है।
गीदड़ की आयु लगभग 12 वर्ष की होती है। विशेष प्रकार से गीदड़ उद्यान में हर जगह दिखाई दे जाते हैं। 

चील


   चील, श्येन कुल, फैमिली फैलकोनिडी (Family falconidae), का बहुत परिचित पक्षी है, जिसकी कई जातियाँ संसार के प्राय: सभी देशों में फैली हुई हैं। इनमें काली चील (Black kite), ब्रह्मनी या खैरी चील (Brahmany kite), ऑल बिल्ड चील (Awl billed kite), ह्विसलिंग चील (Whistling kite) आदि मुख्य हैं।
   चील लगभग दो फुट लंबी चिड़िया है, जिसकी दुम लंबी ओर दोफंकी रहती है। इसका सारा बदन कलछौंह भूरा होता है, जिसपर गहरे रंग के सेहरे से पड़े रहते हैं। चोंच काली और टाँगें पीली होती हैं।
   बाज, बहरी आदि शिकारी चिड़ियों से इसके डैने बड़े, टाँगें छोटी और चोंच तथा पंजे कमजोर होते हैं। चील उड़ने में बड़ी दक्ष होती है। बाजार में खाने की चीजों पर बिना किसी से टकराए हुए, यह ऐसी सफाई से झपट्टा मारती है कि देखकर ताज्जुब होता है
   यह सर्वभक्षी तथा मुर्दाखोर चिड़िया है, जिससे कोई भी खाने की वस्तु नहीं बचने पाती। ढीठ तो यह इतनी होती है कि कभी कभी बस्ती के बीच के किसी पेड़ पर ही अपना भद्दा सा घोंसला बना लेती है। मादा दो तीन सफेद या राखी के रंग के अंडे देती है, जिनपर कत्थई चित्तियाँ पड़ी रहती हैं।

Monday, 12 March 2012

क्या है आपदा और आपदा प्रबंधन ? Disaster Management ?

आपदा प्रबंधन सीखना समय की मांग 


जापान की आपदा ने एक बार फिर बता दिया है कि प्रकृति की मार सब से भयंकर होती है ऐसे में जरूरी हो जाता है कि हम आपदा आने पर किस प्रकार हम बच सके और दूसरों की भी जान बचा सके. आपदा प्रबंधन  के द्वारा हम यह सब  जान सकते है.
आपदा को अंग्रेज़ी में Disaster कहा जाता है Hazard,Risk दो अन्य अंग्रेज़ी के समानार्थी शब्द है और हिंदी में भी इस को कईं शब्दों जैसे प्रलय,विपदा,प्रकोप,विपत्ति,खतरा शब्दों से जाना जाता है परन्तु आपदा के लिए सर्वथा Disaster ही उपयुक्त शब्द है.
आपदा एक असामान्य घटना है जो थोड़े ही समय के लिए आती है और अपने विनाश के चिन्ह लंबे समय के लिए छोड़ जाती है.
प्राकृतिक आपदा को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि एक ऐसी प्राकृतिक घटना जिस में एक हज़ार से लेकर दस लाख लोग तक प्रभावित हों और उनका जीवन खतरे में हो तो वो प्राकृतिक आपदा कहलाती है. 
बेशक प्राक्रतिक आपदाएं मनुष्य व अन्य जीवों को बहुत प्रभावित करती है प्राकृतिक आपदा को कई रूपों में जाना जाता है.


httpen.wikipedia.orgwikiFileHurricane_Katrina_August_28_2005_NASA.jpg httpen.wikipedia.orgwikiTyphoon httphi.wikipedia.orgwiki%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0Gigante.jpg httpen.wikipedia.orgwikiAvalanche
    उपर के चित्र है: १.हरिकेन २.टायफून ३.सुनामी ४.हिमघाव


हरिकेन,सुनामी,सुखा,बाड़,टायफून,बवंडर,चक्रवात सब मौसम से सम्बन्धित प्राकृतिक आपदा हैं.
भूस्खलन और अवधाव या हिमघाव (बर्फ की सरकती हुई चट्टान) ऐसी प्राकृतिक आपदा हैं जिस में स्थलाकृति बदल जाती है.
भूकम्प और ज़्वालामुखी(ज़्वालामुखी के कारण अग्निकांड,दावानल)  टेक्टोनिक प्लेट (प्लेट विवर्तनिकी) के कारण आते हैं.
टिड्डीदल का हमला,कीटो का प्रकोप  को भी प्राकृतिक आपदा माना गया है.
जवालामुखी,भूकम्प,सुनामी,बाड़,दावानल,टायफून,बवंडर,चक्रवात,भूस्खलन ये सब तीव्रगामी आपदाएँ हैं जबकि सूखा,कीटो का प्रकोप,अग्निकांड मंदगामी आपदाएँ है.
मानवीकृत (Man Made) आपदाएँ वो हैं जो मानवीय क्रियाकलाप के कारण होते हैं,जैसे अग्निकांड,बाड़े,भूस्खलन,सूखा.
यहाँ पर यह बता देना अति आवश्यक हो जाता है कि मानवीय दखल से एक नए प्रकार की आपदा से मनुष्य को दो चार होना पड रहा है और वो है,पर्यावरणीय आपदा वैश्विक ऊष्मन Global Warming.
ओद्योगिक क्रियाकलाप जनसंख्या वृद्धि और प्रकृति के साथ खिलवाड़ ने पर्यावरणीय आपदा को जन्म दिया है.
आपदाएँ तो प्राचीन काल से ही आती रही होंगी परन्तु आज के प्रगतिशील मानव ने उनको समझने में जो तेजी ला दी है इससे जन्म हुआ आपदा प्रबंधन का और मनुष्य ने इसके अंतर्गत इन परिस्तिथियों ने जानमाल के कम से कम नुकसान के लिए बहुत से प्रयास किये हैं.  
कुछ अति विनाशकारी  प्राकृतिक आपदाएं ऐसी थी जिन का जिक्र यहाँ करना जरूरी है जिस के बाद इस अवधारणा ने जन्म लिया की आपदा प्रबंधन क्यूँ जरूरी है.
१९९५ की सुनामी,भारत इरान और तुर्की के भयंकर भूकंप,न्यू इंग्लैण्ड व क्युबेक के बर्फीले तूफ़ान,नेब्रास्का में ओलो का कहर,एरिजोना और कलिफोर्निया के दावानल,जापान के भूकम्प आदि त्रासदियाँ आपदा प्रबंधन सिखाने के लिए काफी है.
आपदा प्रबंधन के अंतर्गत ही सबसे बड़ा कदम जो उठाया गया कि ऐसी तकनीके विकसित करने पर जोर दिया गया कि आपदा की किसी तरह भविष्यवाणी की जा सके.
इस उद्देश्य में अंतरिक्ष विज्ञान से बहुत कामयाबी मिली,उपग्रहों की मदद से हरिकेन,टायफून,बवंडर,चक्रवात की सटीक भविष्यवाणी कर के कई बार लाखों लोगो की जानमाल की हानि को बचाया जा सका है. अब तकनीकों की मदद से यह प्रयास जारी हैं कि किसी तरह भूकंप व सुनामी की भी भविष्यवाणी की जा सके,इसके लिए पालतू व अन्य जन्तुओं के व्यवहार परिवर्तन को भी वैज्ञानिक गौर कर रहे हैं.
भूकम्प जैसी आपदा के समय LPG रिसाव आग जैसी दुर्घटना को जन्म देता है,विधुत सप्लाई कट जाती है,जलापूर्ति बंद हो जाती है,जलापूर्ति की घरेलू कनेक्शन पाईप टूट जाने से टैंक का पानी बह जाता है,खाद्य पदार्थ नष्ट हो जाते हैं,लोग मलबे में दब जाते हैं,सड़के मलबे से अट जाती हैं,सहयता देर से पहुँचती है,दोबारा भूकम्प का भय मन में बना रहता है,पीने के साफ़ स्वच्छ पानी का आभाव,कुछ लोग मलबे में से माल तलाश में लूटपाट को बढ़ावा देते है,मृतको की बदबू और महामारी फ़ैल जाती है,सुरक्षित आश्रय नहीं बचता,लोग सहयता सामग्री लूट सकते हैं,जमाखोरी बढ़ जाती है.
ऐसी स्थतियों से निपटने के लिए ही आपदा प्रबंधन सीखना अति आवश्यक है यह तो बकायदा अनिवार्य पाठ्यक्रम होना चाहिए और प्रत्येक नागरिक के लिए इसका प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए|   

Saturday, 10 March 2012

विषाणु (Virus) - The Chain Between Living & Non-Living

विषाणु को अंग्रेजी में वायरस (Virus) कहते हैं। वायरस ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ विष है। तंबाकू के तित्तीरोग के कारण की खोज करने पर पता लगा कि यह रोग बैक्टीरिया के कारण नहीं होता, वरन्‌ एक ऐसे जीवित पदार्थ के कारण होता है। जो बहुत ही सूक्ष्म होता है, इस सूक्ष्म पदार्थ का ही नाम वायरस पड़ा। मनुष्य का पीतज्वर, तथा आलू, ककड़ी और सलाद का चित्तीदार रोग वायरसों के कारण ही होते हैं। वायरस बैक्टीरिया को भी आक्रांत करते हैं। कुछ वायरस पौधों में रहते हुए भी उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचाते। संयुक्त सूक्ष्मदर्शी और पीछे इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से ये देखे जा सकते हैं। तंबाकू का वायरस छड़ के आकार का दिखलाई पड़ता है। इसके क्रिस्टल न्यूविलयोप्रोटीन के बने होते हैं। ये जंतुओं और पौधों की कोशिकाओं में पाए जानेवाले क्रोमोजीन के न्यूविलयोप्रोटीन के समान होते हैं।

वायरस बड़े सूक्ष्म होते हैं। अधिकांश 210 मिलिमाइक्रॉन (1 मिलिमाइक्रान  मिलिमीटर का 1/10,00,000) से भी छोटे होते हैं। ये 15 और 460 मिलिमाइक्रॉन के बीच होते हैं। क्यूफीवर का वायरस सबसे बड़ा 450 मिलिमाइक्रॉन के लगभग होता है। छोटा से छोटा लगभग प्रोटीन के अणु के बराबर होता है। पोलियो रोग का वायरस इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में गोल्फ के गेंद सा दिखाई देता है।

वायरस के बाह्य भाग में प्रोटीन का एक पर्दा और केंद्र में न्यूक्लियिक अम्ल के सिवा और कुछ नहीं होता। जंतुओं के वायरस के मध्य में डी-ऑक्सीरिबोन्यूक्लियिक अम्ल रहता है। अधिकांश पौधों के वायरस कीटों द्वारा फैलते हैं। पत्तियों के घर्षण से भी ये पत्तियों में फैलते हैं। वायरस एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में फैलता है। ये कफ, खाँसी, छींक और बातचीत से एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में चले जाते हैं। वायरस से ही न्यूमोनिया, कनपेड़ा, मसूरिका, जर्मन मसूरिका, इनफ़्लूएंज़ा और जुकाम होते हैं। यकृतशोथ और पोलियों के वायरस रोगी के मल में पाए जाते हैं तथा मक्खियों द्वारा फैलते हैं। पागल कुत्ते का वायरस कुत्ते के काटने से फैलता है। भोजन और पानी से बहुत कम वायरस फैलते हैं। वायरसजनित रोगों में रैबज़, पोलियो, वायरस न्यूमोनिया, चेचक, क्यू फीवर, चिकेन पॉक्स, टेकोमा, पीतज्वर तथा कीटजनित एन्सेफ्लाइटिस इत्यादि भी हैं। इन रोगों का कोई निश्चित्‌ इलाज नहीं है। सल्फा ड्रग और ऐंटीबायोटिक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वैक्सीन का उपयोग ही एकमात्र इलाज है।

10 Weapons That Animals Use


We've come a long way from thinking that what separates us from the animals is, say, using a rock to bash in the skull of our competitors. It turns out that there are a lot of creatures out that that re-purpose tools to make their personal world better and someone else's world a lot worse. Take a look at the world's craziest and most intimidating weapons wielded by animals.

10. The Herring Gull's Bread
This bird has learned how to use bread to construct a trap. Herring gulls live in large colonies in the urban areas of Scotland, supplementing their natural food with discarded human food. When their population went up, and discarded human food didn't completely meet their needs, they headed to goldfish ponds. There, they used pieces of dropped bread to lure goldfish to the surface, where they swooped down and ate them. They're not just warriors, they're gamblers as well, risking their heard-earned bread to get a little meat. With them around, it's like the Old West with wings.
9. The Dolphin's Nets
Bottlenose dolphins have found inspiration in old gladiator movies and created nets to catch and trap their prey. Not being content with being larger and traveling in large groups, the dolphins learned that fish can't tell the difference between walls of bubbles or of mud and regular solid walls. The dolphins circle schools of fish, either blowing air bubbles or kicking up mud and sand, forcing the fish into smaller and smaller areas, at which point the dolphins charge through and eat them.
10 Weapons That Animals Use
8. The Raven's Play-Fighting Swords
The common raven has been acknowledged as one of the most intelligent birds - and animals - anywhere. They're able to improvise tools in new situations, teach other birds how to use tools, and will play with any new object they've found, looking for a use for it. The twigs that they break off of trees aren't helpful in actual fights compared to their powerful beaks and claws, but they do use them as weapons - in play sword fights. Young ravens will joust at each other and clack their twigs together just the way young kids who break branches off of trees do.
7. The Seagull's Cars
In the ongoing war between shelled animals and winged animals, hard surfaces were the best technology either of them had devised. Gulls would fly high up and drop oysters and clams onto rocks, shattering them and feasting on their gooey insides. But that didn't always work, and the repeated trips up were tiring and the oysters could just roll off the rocks into the sea. Then the car came along, and suddenly the oysters' prospects dimmed. If a sidewalk couldn't finish off an oyster, a truck driving over it certainly could. Seagulls would drop the oysters in the crosswalks of intersections, let the cars roll over them, wait for the light to change, and then swoop down and feast. They know our patterns, people. And they know how to weaponize us.

6. The Elephant's Rocks
Sometimes you need to get back to basics with a good, old-fashioned rock. Elephants certainly do. These giant mammals have been known to throw rocks at anyone they don't like. Wild elephants toss rocks at cars, but even 'tame' elephants get in on the act. In Korea, a woman at a children's zoo sustained a head injury because an elephant threw a rock at her. There have also been cases when elephants picked up big rocks and threw them at electric fences, downing them so they could pass through. So not only do elephants use rocks as projectiles, they use them in siege warfare as well. They will take down our walls. (There are plenty of clips on youtube of elephants throwing rocks. I picked this one to show the precision of their aim and because the people taunting the elephant clearly deserved it.)
5. The Gorilla's Dirt and Rocks
This one is sinister because it's aimed at humans. Gorillas in Cameroon were observed being rather unfriendly to incoming humans. The humans were not poachers, but the gorillas didn't care too much about that. They weren't welcome, and so the gorillas drove them back by throwing rocks and dirt at them. This would be quite disturbing, if it weren't for the fact that the western lowland gorillas seemed to forget that they were a great deal bigger (weighing up to three hundred pounds) and altogether stronger than the people coming through, and instead believed that thrown dirt was more frightening than a gorilla attack.
4. The Dolphin's Sea Snake
Dolphins, it has been widely observed, are evil geniuses. They murder for fun. They kidnap other dolphins. They apparently hump every tourist silly enough to get in the water with them. Oh, and they use live sea snakes as weapons. The sea snake is one of the deadliest snakes in the world, and its venom causes 'full respiratory paralysis.' Normally sea snakes are pretty chill, but one thing that really whips them into aggression is being grabbed around the midsection by a dolphin and dragged through schools of fish. The sea snakes bite the fish, the fish die, and 'harvester' dolphins gather them up. This means that if you anger a dolphin, at least a dolphin around Australia, it can get back at you by siccing a snake on you.

3. The Blanket Octopus's Jellyfish Whip
The Blanket Octopus is an octopus with beautiful webbing between its tentacles, making it look like it's trailing blankets. It uses these to sail around the ocean and entrap its prey, but they aren't its most formidable tool. It's immune to the sting of the Man of War jellyfish, so when the octopus is feeling in need of security, it glides down to the jellyfish and rips off a few tentacles. These tentacles are full of stinging poison that will hurt or kill almost anything else in the ocean, so the octopus carries them around, and whips the everloving crap out of whatever it pleases. This technically shouldn't be scarier than a dolphin with a sea snake, but it is, because while the dolphin carries the snake in its mouth, the octopus carries the jellyfish tentacle in its hand. It's like a tiny eight-armed alien whipping you with poison. Would you tell it to stop? Not if there were any more Man of Wars in sight.
2. The Boxer Crab's Gloves
You get in a fight with a crab, you better have a manager. If he's any good, like Mickey, he'll make sure you don't fight a boxer crab. It looks like a cheerleader, waving around little pom-poms and walking sideways. Get in the ring with it, though, and you'll get an unpleasant surprise. The pom-poms are any of three different kinds of sea anemones. These anemones share one common trait: the ability to sting the hell out of anything they touch. The boxer crab will punch something with its fist covered in anemones, causing whatever it is, small prey or large predator, a huge amount of pain. It's not the boxer's fault. It must break you. This was just the best way to do it.
1. The Chimp's Arsenal
I've never liked monkeys (or apes, but monkeys is a funnier word), but haven't put my finger on why. I thought maybe it was just reading Murders in the Rue Morgue and an impressionable age, but now I understand that I was on to something. Gone are the days when chimps were cute guys who made sticks that could pull up termites from hills. In are the days when chimps, specifically a chimp group living in Senegal, sharpen spears with their teeth, and skewer sleeping bush babies, eating them corn-dog style. When they're done, they clean the spear and move on, saving it for later. This group also lives, part of the time, in caves. As an added bonus, another chimp at a zoo in Sweden is throwing rocks at visitors. That's nothing new, but what's disturbing is the chimp is saving the rocks, piling them up so he has a weapons cache when people who displease him come around. This means that stronger, more agile apes are not only making weapons but hoarding them to build arsenals. This is the way the world ends, not with a bang, but with a thousand screaming, armed chimpanzees.

Wednesday, 7 March 2012

A Funny Trick Of MS World

Opent The MS World & Type

=rand (200, 99)


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What happenned?



जुगनू क्यों चमकते हैं


    

   रात के समय प्रायः पेड़-पौधों के झुरमुट के आसपास चमकते हुए जुगनुओं को तो आपने देखा ही होगा। इन्हें देखकर कभी न कभी आपके मन में यह प्रश्न भी उठा होगा कि आखिर क्यों चमकते हैं ये जुगनू? जुगनुओं के चमकने के पीछे उनका मुख्य उद्देश्य होता है अपने साथी को आकर्षित करना, अपने लिए भोजन तलाशना और कीटभक्षी शत्रुओं से अपनी रक्षा करना। जुगनुओं की चमक का रंग लाल, हरा, पीला या मिश्रित रंग का होता है। जुगनू की चमक लगातार न होकर रुक-रुक कर होती है। नर तथा मादा जुगनुओं के प्रकाश के रंग तथा जलने-बुझने का अन्तराल अलग-अलग होता है।
पहले-पहल यह माना जाता था कि जुगनू के शरीर में फास्फोरस होता है जिसकी दीप्ति से वे चमकते हैं किन्तु सन् 1794 में इटली के स्पेलेंजानी नामक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया कि जुगनू की चमक फास्फोरस से नहीं बल्कि उनके शरीर में होने वाली रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले ‘ल्युसिफेरेस’ और ‘ल्युसिफेरिन’ नामक प्रोटीनों के कारण होता है। ये प्रोटीन जुगनू के पेट के नीचे के कुछ अंगों में बनते हैं। जब ‘ल्युसिफेरेस’ और ‘ल्युसिफेरिन’ का सम्पर्क जब ऑक्सीजन से होता है तो चमक पैदा होती है।
यहाँ पर हम आपको यह बता दें कि जुगनू के अतिरिक्त शरीर से रोशनी पैदा करने और भी जीव होते हैं। ऐसे जीवों की अब तक लगभग एक हजार प्रजातियाँ खोजी जा चुकी हैं। समुद्र की गहराइयों में कुछ मछलियाँ, घोंघे, केकड़े, जैली फिश आदि भी अपने शरीर से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। कुछ प्रकार के कुकुरमुत्ते और फफूंदों में भी यह गुण पाया जाता है। इस प्रकार के जीवों के शरीर से निकलने वाली चमक शीतल प्रकृति की होती है और इसे ‘जीवदीप्ति’ कहा जाता है।

जुनून है तो बस किसी को जीवनदान देने का।

1500 जिंदगियों को बचाने वाला दसई 
जबलपुर में दोपहर के 12 बजकर 20 मिनट पर जब राजकोट एक्सप्रेस ट्रेन भेड़ाघाट के करीब स्थित गेट नंबर 308 पर आने वाली थी तब मास्टर क्राफ्टमैन दसई को गेट के करीब पटरी की फिश प्लेट में कुछ गड़बड़ नजर आई। जब दसई ने हथोड़े से फिश प्लेट पर वार किए तो उन्हें पता लगा कि फिश प्लेट के बोल्ट खुले हुए है। यह देखकर दो खलासियों के साथ दसई फिश प्लेट के नटों को कसने में जुट गए। लेकिन जब राजकोट एक्सप्रेस ट्रेन के आगमन का कंपन उन सभी को पटरियों पर महसूस होने लगा तो दोनों खलासी अपनी जान बचाने के लिए पटरी से उठ खड़े हुए। लेकिन दसई ने हिम्मत नहीं हारी और वह पटरी पर तेजी से नट कसने के लिए हाथ चलाने लगे। दसई को उस वक्त अपनी मौत से ज्यादा उन 1500 लोगों की जिंदगी की फिक्र थी जो उस वक्त उस ट्रेन में सवार थे। अंततः हजारों जिंदगियों को बचाने वाले दसई को मौत मिली। 

Monday, 5 March 2012

क्या आप अपना ब्लॉग शुरू करने जा रहे हैं ?

दूसरों की देखा-देखी ब्लॉग मत शुरू कर लें. 

यदि कर लिया है तो भी अपने-आप से यह सवाल ज़रूर पूछें " आप ब्लॉगिंग क्यों करना चाहते हैं ! "

यह बेकार का सवाल नहीं है जनाब , इस सवाल का जवाब ही आप के लेखन की दशा और दिशा तय करेगा.

बहुत ही ज़रूरी है यह.

कुछ जवाब तो आपको विकल्प के रूप में भी दे सकता हूँ --


(1) अपनी बात कहने की आजादी को महसूस करना.

(2) मनोरंजन का एक नया साधन.

(3) हिन्दी में ब्लॉगिंग कर हिन्दी की सेवा करना.

(4) पूरे विश्व से जुड़ने की इच्छा.

(5) पत्रकारिता का एक नया रूप.

(6) आय का एक स्रोत .

(7) मन की भडास और कुंठा निकालने का साधन.

इन्हें मेरे ब्लॉग के सर्वे से लिया गया है. आप यहाँ पर अपनी राय दे सकते हैं. यदि आप एक नए ब्लॉगर हैं तो आपकी इच्छा शुरूआती चार में से ही होनी चाहिये. आप एकदम हलके- फुल्के ढंग से ब्लॉग बनाएँ.

ये सोच कर बनाएँ कि ब्लॉग का एड्रेस ( पता- ******.ब्लागस्पाट.कॉम ) और उसका टाइटिल यानी आपके ब्लॉग का क्या नाम होना चाहिये.

वैसे आप बाद में नाम, पता और लेख बदल भी सकते हैं.

यदि समस्या आए तो ब्लॉग्स-पंडित ई-गुरु राजीव किस लिए हैं :)

शुरुआत में कुछ भी लिखिए अखबार से कुछ लिखें या किसी पत्रिका से कुछ लिखें या अपनी ही कोई रचना लिखें और उसे प्रकाशित (पब्लिश) करें. आप को बेहद खुशी होगी.

फ़िर अपने ब्लॉग को सजाने का काम करें, उसमें घड़ी या कैलेंडर भी लगायें.

अन्य दूसरी सजावटी वस्तुओं के लिए मेरे अन्य लेख भी पढ़ें, इससे आपका ज्ञान भी बढेगा और मज़ा भी आएगा।

" ब्लॉग क्या है " इस विषय पर टी.वी. पर भी एक चर्चा चली थी. पेश है यह रिपोर्ट -







राह चलना ही न सीखो, राह का निर्माण सीखो|


दीप से जलना न सीखो, दीप से मुस्कान सीखो;
सूर्य से ढलना न सीखो, सूर्य से उत्थान सीखो |
अपनी मजबूरी पे, अश्क बहाने वाले राही;
राह चलना ही न सीखो, राह का निर्माण सीखो|

पाकिस्तान के न्यूज़ एंकर जावेद चौधेरी की बेबाकी



पत्रकारों के लिए पाकिस्तान खतरनाक जगह है. यहाँ बेबाकी से पत्रकारिता करना बेहद कठिन काम है. रिपोर्टर्स विदआउट बॉडर्स के अनुसार पाकिस्तान में पिछले साल कुल 10 पत्रकार मारे गए. इसी संस्था की रिपोर्ट में पाकिस्तान के दक्षिण बलूचिस्तान इलाके के खुजदार जिले को 10 सबसे ज्यादा खतरनाक स्थानों में से एक माना गया है.
लेकिन इतने खतरनाक हालात के बावजूद पाकिस्तान के कुछ ऐसे पत्रकार हैं जिनके अंदर पत्रकारिता का जज्बा अब भी जिंदा है. यह जज्बा हाल ही एक लाईव कार्यक्रम के दौरान पाकिस्तान के एक टीवी चैनल पर पूरे पाकिस्तान ने देखा. पाकिस्तान के मशहूर टीवी एंकर जावेद चौधेरी ने टीवी पर पाकिस्तानी हुक्मरानों को जमकर खरी - खोटी सुनाई और पाकिस्तानी हुक्मरानों को भिखारी तक कह डाला.
दरअसल पिछले साल नाटो हमले में मारे गए सैनिकों की मौत से टीवी एंकर जावेद चौधेरी खफा थे और इसके लिए पाकिस्तानी नेताओं को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने टीवी पर लाइव ही सारी कसर निकाल दी. साथ ही भारत से सीख लेने की सलाह तक दे डाली. जावेद की बेबाकी की आप भी इस वीडियो में देखें.