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Monday, 22 October 2012

ब्रह्मांड के ब्लैकहोल


भारतीय मूल की वैज्ञानिक डॉ. मंदा बनर्जी ने प्राचीन ब्रह्मांड  में विशालकाय ब्लैकहोल के झुंड का पता लगा कर पूरी दुनिया के खगोल वैज्ञानिकों में जबरदस्त हलचल मचा दी है। ये ब्लैकहोल अभी तक अज्ञात थे। डॉ. बनर्जी के नेतृत्व में कैम्बि्रज की एक रिसर्च टीम ने पृथ्वी से करीब 11 अरब प्रकाश वर्ष दूर इन ब्लैकहोल की मौजूदगी का पता लगाया है। रिसर्चरों का अनुमान है इस झुण्ड में कम से कम 400 ब्लैकहोल हैं जिनका रेडिएशन पृथ्वी पर पहुंच रहा है। वैज्ञानिक समुदाय इस बात पर हतप्रभ है कि इतने विराट ब्लैकहोल अभी तक हमारे पर्यवेक्षण के दायरे में क्यों नहीं आए। ब्लैकहोल का यह झुंड धूल के चक्रीदार बादलों से घिरा हुआ है। इसी वजह से इन्हें अभी तक देख पाना संभव नहीं था। अब डॉ. बनर्जी की टीम ने अत्याधुनिक इंफ्रारेड टेलीस्कोप से धूल के बादलों को भेदते हुए इस ब्लैकहोल झुंड को खोज लिया है।

डॉ. बनर्जी ने ब्रिटेन की रॉयल एस्ट्रोनोमिकल सोसायटी की मासिक पत्रिका में अपनी खोज की जानकारी दी है। उन्होंने लिखा है कि रिसर्च टीम के निष्कर्षो से विशाल ब्लैकहोल के अध्ययन पर गहरा असर पड़ेगा। वैसे तो इन ब्लैकहोल का अध्ययन पिछले कुछ समय से हो रहा है, नए निष्कर्षो से संकेत मिलता है कि कुछ अत्यंत विशाल ब्लैकहोल हमारी दृष्टि से छुपे हुए हैं। ब्लैकहोल के झुंड में एक दैत्याकार ब्लैकहोल है जिसका द्रव्यमान सूरज से 10 अरब गुना और हमारी आकाशगंगा के सबसे विराट ब्लैकहोल से 10000 गुना अधिक है। इस तरह यह अब तक देखा गया विशालतम ब्लैकहोल है। इस तरह के अधिकांश ब्लैकहोल उस पदार्थ के माध्यम से देखे जाते हैं जिसे वे अपनी ओर खींचते हैं। आसपास का पदार्थ ब्लैकहोल के नजदीक जाते ही गरम हो जाता है। खगोल वैज्ञानिक इस रेडिएशन को देख कर ब्लेक होल का पर्यवेक्षण का सकते हैं। डॉ. बनर्जी की खोज के बाद खगोल वैज्ञानिक ब्रंाांड के उन कोनों को फिर से देखेंगे.जो धूल के घने बादलों में छिपे हुए हैं।

आखिर क्या होते हैं ये ब्लैकहोल? ब्लैकहोल अंतरिक्ष का वह क्षेत्र हैं जहां शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के कारण वहां से प्रकाश बाहर नहीं निकल सकता। इसमें गुरुत्वाकर्षण बहुत ज्यादा इसलिए है क्योंकि पदार्थ को बहुत छोटी जगह में फिट होना पड़ता है। ऐसा तारे के नष्ट होने की स्थिति में होता है। चूंकि यहां से प्रकाश बाहर नहीं आ सकता। लोग इन्हें नहीं देख सकते। ये अदृश्य होते हैं। किसी तारे के नष्ट होने पर ब्लैकहोल बनता है। ब्लैकहोल छोटे और बड़े दोनों हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का खयाल है कि सबसे छोटे ब्लैकहोल एक अणु जितने छोटे हैं। ये ब्लेक होल भले ही छोटे हों लेकिन उनका द्रव्यमान अथवा मॉस एक पहाड़ के बराबर होता है। द्रव्यमान एक वस्तु के अंदर पदार्थ की मात्रा को कहा जाता है। बड़े ब्लैकहोल स्टेलर कहलाते हैं। उनका द्रव्यमान सूरज के द्रव्यमान से 20 गुना तक ज्यादा होता है। सबसे बड़े ब्लैकहोल सुपरमैसिव कहलाते हैं क्योंकि उनका द्रव्यमान 10 लाख सूर्यो से भी ज्यादा होता है। हमारी मिल्कीवे आकाशगंगा में सुपरमैसिव ब्लैकहोल का नाम सैगिटेरियस है। इसका द्रव्यमान 40 लाख सूर्यो के बराबर है।

वैज्ञानिकों का खयाल है कि ये ब्लैकहोल दूसरी आकाशगंगाओं के साथ जबरदस्त टक्करों के बाद विशाल रूप लेने लगते हैं। इस प्ररिया में तारे बनते है और ब्लैकहोल इन्हें निगलने लगते हैं। इस हिंसक मुठभेड़ से आकाशगंगाओं के अंदर धूल भी पैदा होती है। ब्लैकहोल का जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण इस धूल को अपनी ओर खींच लेता है। नया खोजा गया दैत्याकार ब्लैकहोल आकाशगंगा के सबसे लाल पदार्थो में से है। इसका लाल रंग आसपास की धूल की वजह से है। डॉ. मंदा बनर्जी ने 2009 में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन से सुदूर ब्रंाांड में आकाशगंगाओं पर पीएचडी की थी। इस समय वह अपने अध्ययन के जरिये यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि आकाशगंगाओं का विकास कैसे हुआ।

Monday, 15 October 2012

भारत या इंडिया, क्या नाम है देश का?



इस सवाल ने केंद्र सरकार को मुश्किल में डाल दिया है, सूचना के अधिकार क़ानून यानी आरटीआई के तहत उर्वशी शर्मा ने पूछा है कि सरकारी तौर पर भारत का नाम क्या है?
भारत या इंडिया, क्या नाम है इस देश का? सरकार से यह सवाल पूछा है लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा ने !


उन्होंने बीबीसी को बताया- इस बारे में हमारे बीच काफी असमंजस है, बच्चे पूछते हैं कि जापान का एक नाम है, चीन का एक नाम है लेकिन अपने देश के दो नाम क्यों हैं?

उर्वशी कहती हैं कि उन्होंने यह सवाल इसलिए पूछा है ताकि आने वाली पीढ़ी के बीच इस बारे में कोई संदेह न रहे।


उर्वशी बताती हैं कि उनके इस सवाल ने सरकारी दफ्तरों में हलचल मचा दी है क्योंकि सरकार के पास फिलहाल इसका कोई जवाब नहीं है।

वे कहती हैं- हमें सुबूत चाहिए कि किसने और कब इस देश का नाम भारत या इंडिया रखा? कब यह फैसला लिया गया?

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में लिखा है- ‘इंडिया दैट इज़ भारत’ इसका मतलब ये हुआ है कि देश के दो नाम हैं. सरकारी तौर पर ‘गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया’ भी कहते हैं और ‘भारत सरकार’ भी.

अंग्रेजी में भारत और इंडिया दोनों का इस्तेमाल किया जाता है जबकि हिंदी में भी इंडिया कहा जाता है. उर्वशी कहती हैं वो इस मुद्दे को गंभीरता से लेती हैं क्योंकि ये देश की पहचान का सवाल है.

उर्वशी बताती हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें जवाब मिला है जिसमें कहा गया है कि उनके आवेदन को गृह मंत्रालय के पास भेजा गया है।

वे कहती हैं कि गृह मंत्रालय में इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था इसलिए इसे संस्कृति विभाग और फिर वहाँ से राष्ट्रीय अभिलेखागार भेजा गया है जहाँ जानकारी खोजी जा रही है।

राष्ट्रीय अभिलेखागार 300 वर्षों के सरकारी दस्तावेज़ों का खज़ाना है। यहाँ के एक अधिकारी ने बताया- हम इसका जवाब तैयार कर रहे हैं, जवाब सीधे उर्वशी शर्मा को भेजा जाएगा।

उर्वशी शर्मा का कहना है कि राष्ट्रीय अभिलेखागार के पास याचिका पहुँचे तीन स्प्ताह हो गए, पर अभी तक उत्तर नहीं मिला।

उर्वशी शर्मा को राष्ट्रीय अभिलेखागार के जवाब का इंतजार है, तब तक संविधान में लिखे ‘इंडिया दैट इज भारत’ यानी इंडिया और भारत दोनों नामों को सरकारी नाम की तरह से ही देखना होगा।

Sunday, 14 October 2012

जब दिल पर लगेगी तभी बात बनेगी – पर किसके लगेगी ?

आज कल टी वी हो या समाचार पेपर सब पर एक ही चर्चा है जब दिल पर लगेगी तभी बात बनेगी :- सत्यमेव जयते

पर मेरी एक बात समझ में नहीं आई की किस के दिल पर लगेगी, आमिर खान के, अभिषेक मनु सिंघवी के, एन डी तिवारी के, ओमर अब्दुल्लाह के, ये उन लोगो के जिन्होंने अपनी पहली पत्नी को छोड़ कर दूसरी, तीसरी और आगे अनेके शादी की है, क्या कभी सोचा है, देश में क्या दुनिया में हर कोई इज्ज़तदार माँ बाप ये क्यों चहाता है की उस के घर लड़की ना हो, क्यों की इन जैसे लोग अपनी खुशी ( हवस) के लिये नई-नई शादी करते है, शादी नहीं करते तो लडकियो का इस्तमाल करते है, ये वो लोग है जो समाज को दिशा देता है, जिन का युवा वर्ग अनुशरण करता है, तथा मीडिया भी इन लोगो को आगे ला कर दिखता है की आज इस महान व्यक्ति ने दूसरी, तीसरी ….. को पटाया या फसाया, मीडिया भी दो, तीन दिन तक इस खबर को दिखा कर युवा वर्ग को असा करने को उत्साहित करता है,


फिर जब एसा देख कर युवा वर्ग किसी को पटाता या फसाता है, या पटा या फसा नहीं पाता तो वो दुसरे रास्तो से अपनी (समाज की नज़र में बुरी) इच्छाओं की पूर्ति करता है, क्यों की वो जिन लोगो को देख कर या सब कर रहा है, उन लोगो को समाज में आदर्श के रूप में देखा जाता है, फिर जब उस के इस कम को समाज गलत कहता है, तो वो विद्रोही हो जाता है, क्यों की उस ने जो देखा, जो सुना, जो समझ वो उस की नज़र में ठीक है, इस कारण से देश में क्या दुनिया में हर कोई स्त्री ये चहाती है की जैसे उस ने सहा वैसा उस की पुत्री को ना सहना पड़े |

अब ये सोचो की “जब दिल पर लगेगी तभी बात बनेगी” किस के दिल पर लगनी चाहिये, देश की आम जनता के या समाज को दिशा देने वालो के

Via : jagran.com

Saturday, 13 October 2012

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना / गोपालदास "नीरज"



जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,
ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।



सृजन है अधूरा अगर विश्‍व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा,
कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब,
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

Wednesday, 10 October 2012

सपने देखने में डर लगता है अब... || जगजीत सिंह : प्रथम पुण्य स्मरण पर विशेष



हर इंसान अपनी जिंदगी किसी ख्वाब के साथ (सहारे) और किसी न किसी सपने के लिए जीता है। सपने... जो हमारे खुरदुरे जीवन को मखमली चादर में लपेटते हैं। पर अब, जगजी‍त सिंह की मृत्यु के बाद (प्रथम पुण्य स्मरण) मुझे सपने देखने में डर-सा लगने लगा है। गोया सपनों पर हमारा इख्तियार नहीं होता, पर....।

अब तक की जिंदगी में यूं तो कई लोगों ने मुझे प्रभावित किया है। पर दो ऐसे शख्स हैं- जिनसे मिलने की ख्वाहिश थी। एक हैं युगपुरुष महादानी कर्ण, जिनसे मिल पाना तो खैर मुमकिन था ही नहीं। दूसरी शख्सियत है जग को जी‍त लेने वाली हर दिल अजीज आवाज। बेमिसाल फनकार जगजीत सिंह, जिनसे मिलना अब सपना बनकर रह गया है। अब वे फलक पर चमकते सितारे हैं जिसे छूना नामुमकिन है। पिछले बरस आज ही के दिन हमेशा के लिए खामोश हो गई इस आवाज के मोहपाश से, उनके वजूद के सम्मोहन से कोई बाहर नहीं आ पाएगा। वो जो रवानी थी जिंदगी में, अब कमतर होती दिखती है।

वैसे जगगीत सिंह जी की मकबूलियत गजल गायक के तौर पर ज्यादा रही पर मेरा ख्याल है कि यदि आप उनके शबद या पंजाबी गीत सुनें तो जरूर मानेंगे कि मो. रफी के बाद जगजीत ही वो सदाकत आवाज है जिसके बुलाने पर ईश्वर प्रकट होते होंगे। उनके गायन और आवाज की तो खैर पूरी ‍दुनिया ही दीवानी है पर उनकी शख्सियत भ‍ी उतनी ही वजनदार है। उनकी जिंदादिली, सादगी और साफगोई आपको उनका कायल कर देती है।

इंदौर में उनकी महफिलों का हिस्सा बनकर ही मैंने ऐसा महसूस किया है। उनकी महफिल कभी खत्म न हो यही इच्छा सबके मन में रहती होगी। शायद वो सबके दिलों में जिंदादिली और जोश भर देने का उद्देश्य लेकर ही महफिल का आगाज करते थे और अंजाम यह होता कि फिर रात नहीं, दिन ही दिन होता।

खैर अब इन बातों से उनकी याद की कसक और बढ़ जाए तो क्या कीजिएगा। उनकी मौत के बाद कई आलोचनाकारों ने अपने लेखों और विचारों के जरिए (जगजीत सिंह के बारे में) नकारात्मक टिप्पणियां भी कीं। इसने जगजीत के मुरीदों को अप्रत्यक्ष रूप से आहत किया है। आज जगजीत की प्रथम पुण्यतिथि पर उन सभी से गुजारिश है कि अपने तमाम आग्रहों और झुकावों को नजरअंदाज कर जगजीत की ये गजलें सुनें...


दिल को क्या हो गया खुदा जाने, अपना गम भूल गए, सोचा नहीं अच्छा बुरा, इश्क में गैरते, माना कि मुश्ते खाक से, नजरे करम फरमाओ, ‍दीनन दुख मैं रोया परदेस में, हम तो हैं परदेस में, बात निकलेगी, बात साकी की ना टाली जाएगी, हे राम, उम्र जलवों में और... खैर बहुत लंबी लिस्ट है पर इन गजलों को सुनें और जन्नत का लुत्फ उठाएं।

इस जांबख्श आवाज ने अपने हर मुरीद को गजलों की दौलत से अमीर बना दिया है। वो खुद हमारे व्यक्तिगत खजाने के सबसे नायाब नगीने हैं। जब मैंने पहली बार मृत्युंजय (शिवाजी सावंत द्वारा लिखित पुस्तक) पढ़ी तब से कर्ण का व्यक्तित्व मेरे अस्तित्व पर छा-सा गया था। तभी से सोचा था कि ये किताब उस शख्स को भेंट करूंगी जो मुझे बेइंतहा मुतासिर करेगा।

जब जगजीत जी की आवाज पहली बार सुनी तब ये तय हो गया कि यह किताब उन्हीं को देना है। जब उनकी गजलों को पहली बार लाइव सुना तभी से यह तोहफा साथ लिए रखा। इस उम्मीद में कि शायद कभी उनसे मुलाकात हो जाए पर...।

हर महफिल के बाद इस भेंट में एक-एख चीज और जुड़ती गई और अब मखमली कपड़े में लिपटी वो किताब, एक चंदन की तस्बीह (माला), जगजीत की ही कैसेट के कवर पर बना (अधूरा) उनका पोर्ट्रेट और तेजस्वी सूर्य की छोटी-सी पेंटिंग बस यही छोटी-सी पूंजी मेरे खजाने की बरकत बनी रहेगी, ताउम्र। उनसे मिलकर उन्हीं की गजल गिटार पर सुनाने की ख्वाहिश भी उनके साथ ही खत्म हो गई, शायद। पुर्नजन्म जैसी कोई शै वाकई होती हो तो इन हसरतों को पूरा कर पाने की कोई सूरत बने, आमिन।

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले... क्या खूब फरमा गए हैं मिर्जा गालिब। जगजीत को गुजरे आज (10 अक्टूबर) पूरा एक बरस हो गया। उन्हें हमारी श्रद्धां‍जलि।