सचिन के लक्ष्यों को लेकर सचिन से अधिक उनके फैन पगलाए हुए थे. हर लक्ष्य के बाद और नए लक्ष्य तय कर दिए जाते थे. |
बीसवीं सदी की शुरुआत यानी 1900 के आसपास ये माना जाता था कि भौतिक शास्त्र अपने चरम पर पहुंच चुका है और जो खोजा जा सकता था वो खोजा जा चुका है.
अब जो खोजा जाएगा वो बस छोटी मोटी बात होगी यानि विज्ञान पूर्ण हो गया है, और लगभग इसी समय अल्बर्ट आइंस्टीन ने क्वांटम फीजिक्स और सापेक्षता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसने पूरे भौतिक शास्त्र को उलट पुलट कर रख दिया.
खेल के रिकार्ड भी कुछ ऐसे ही होते हैं.
विशेषज्ञ तय करते हैं कि अब इससे बेहतर नहीं हो सकता और फिर ऐसा हो जाता है.
जब बॉब बीमन ने मेक्सिको ओलंपिक में 8.90 मीटर की लंबी कूद लगाई थी तो कई लोगों को लगा था कि ये रिकार्ड अब नहीं टूटेगा. यह 25 साल भी नहीं चला.
क्रिकेट की बात
क्रिकेट के रिकार्ड की बात करें तो दो रिकार्ड हमेशा याद किए जाते हैं.
सर डॉन ब्रैडमैन का करियर का औसत 99.94 और जिम लेकर के एक ही मैच में 90 रन देकर लिए गए 19 विकेट
हाल ही में एक और रिकार्ड बना मुरलीधरन के टेस्ट क्रिकेट में 800 विकेट.
अब इसी श्रृंखला में एक और नाम जुड़ा है- अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सचिन का सौंवा शतक.
रिकार्ड कितना बड़ा है इसका अंदाज़ा लगाने के लिए देखिए, दूसरे नंबर पर मौजूद रिकी पोंटिंग को जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कुल शतक लगाए हैं 71.
टेस्ट क्रिकेट में सचिन के 52 शतकों के बाद जैक्स कैलिस का नंबर है जिन्होंने 42 टेस्ट शतक लगाए हैं.
वनडे में सचिन के 49 शतकों के बाद दूसरे नंबर पर रिकी पोंटिंग हैं जिन्होंने मात्र 30 शतक लगाए हैं.
क्या इसकी कोई तुलना हो सकती है?
फैन पगलाए
तेंदुलकर ने जब 16 साल की उम्र में अपना करियर शुरु किया था तो 35 टेस्ट शतक बनाना संतोषजनक माना जाता था और वनडे में 25 शतक बन जाएं तो 60 अंतरराष्ट्रीय शतक अच्छा लगता था.
ऐसा लगता है कि सचिन के लक्ष्यों को लेकर सचिन से अधिक उनके फैन पगलाए हुए थे. हर लक्ष्य के बाद और नए लक्ष्य तय कर दिए जाते थे.
अब जबकि टेस्ट मैचों के भविष्य पर ही बहस चल रही है जहां टेस्ट मैचों की संख्या कम किए जाने पर विचार हो रहा है तो फिर यह बात बेकार लगती है कि रिकार्ड टूटने के लिए ही बनते हैं.
किसी मर्डर मिस्ट्री की तरह बल्लेबाज़ों का भी अपना उद्देश्य होता है, मौके होते हैं और लक्ष्य होते हैं.
फिर सवाल उम्र का भी था. इच्छा ज़रुर थी लेकिन 40 की उम्र में शरीर साथ नहीं देता.
'सौम्य' तेंदुलकर
यह देखना आसान है कि 99.94 के टेस्ट औसत को पार कर पाना क्यों मुश्किल है.ब्रैडमैन के बाद दूसरे नंबर पर हर्बर्ट सटक्लिफ हैं जिनका औसत 60.73 है. ये उन खिलाड़ियों के औसत की बात हो रही है जिन्होंने 50 से अधिक टेस्ट खेले हैं.
लेकर की बात करें तो ये भी मुश्किल है. एक ही मैच में दो बार दस दस विकेट लेना असंभव ही लगता है. लेकर के बाद दूसरे नंबर पर हैं सिड बार्नेस जिन्होंने 159 रन देकर 17 विकेट लिए हैं.
तेंदुलकर सौम्य है लेकिन वो आज के ज़माने के सिकंदर हैं जिनके लिए कोई दुनिया जीतना बाकी नहीं रह गया है.
सचिन ने एक दिवसीय क्रिकेट में 49 और टेस्ट क्रिकेट में 51 शतक लगाए हैं |
लेकिन किसी के लिए भी 100 अंतरराष्ट्रीय शतक बनाना मुश्किल है जिसके लिए करियर जल्दी शुरु करना होगा और कम से कम दो दशक खेलना होगा जिसमें हर साल कम से कम पांच शतक लगाने होंगे. ये असंभव नहीं तो
मुश्किल ज़रुर दिखता है.
भारतीय क्रिकेट जोश पर टिका है जहां भावनाएं बहुत जल्दी आहत हो जाती हैं. खिलाड़ियों को भगवान माना जाता है. रोमांस यथार्थ पर भारी है. भावनाएं तर्क और बहस को पार कर जाती हैं.
यही कारण है कि हार में तेंदुलकर के शतक का जश्न मनाया जाता है...जीत में 40 रन बनाएं सचिन तो जश्न का मज़ा कम होता है.
शायद तभी लोगों को सचिन के 99 अंतरराष्ट्रीय शतकों में से सिर्फ 53 शतकों से भारत को जीत मिली है.
लेकिन आज... बात कुछ और थी.
हेमिंग्वे के शब्दों में कहें तो आपकी किस्मत अच्छी है अगर आपने तेंदुलकर के करियर को देखा है क्योंकि जिंदगी में आप कहीं भी जाएंगे तेंदुलकर आपके साथ रहेंगे.
...और ये एहसास तेंदुलकर की सबसे बड़ी उपलब्धि है.
From :-BBC Hindi
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