खगोलशास्त्र में महानोवा (सुपरनोवा) किसी तारे के भयंकर विस्फोट को कहते हैं। महानोवा नोवा से अधिक बड़ा धमाका होता है और इस से निकलता प्रकाश और विकिरण (रेडीएशन) इतना ज़ोरदार होता है के कुछ समय के लिए अपने आगे पूरी आकाशगंगा को भी धुंधला कर देता है लेकिन फिर धीरे-धीरे ख़ुद धुंधला जाता है। जब तक महानोवा अपनी चरमसीमा पर होता है, वह कभी-कभी कुछ ही हफ़्तों या महीनो में इतनी उर्जा प्रसारित कर सकता है जितनी की हमारा सूरज अपने अरबों साल के जीवनकाल में करेगा।
महानोवा के धमाके में सितारा अपने अधिकाँश भाग को ३०,००० किमी प्रति सैकिंड (यानि प्रकाश की गति का १०%) तक की रफ़्तार से व्योम में फेंकता है, जो अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में एक आक्रमक झटके की तरंग बन के फैलती है। इसके नतीजे से जो फैलता हुआ गैस और खगोलीय धूल का बादल बनता है उसे "महानोवा अवशेष" कहते हैं।
नाम का इतिहास
"महानोवा" को अंग्रेज़ी में "supernova" (सुपरनोवा) लिखा जाता है। १६वी सदी के वैज्ञानिक टैको ब्राहे ने एक महानोवा को देखा था, जिसका नाम आगे चलकर "ऍस॰ऍन॰ १५७२" रखा गया। उन्होंने इसे अपनी किताब में लातीनी भाषा में "दे स्तेल्ला नोवा" (de stella nova) बुलाया जिसका मतलब है "नए तारे के बारे में" जिस से "नोवा" नाम बैठ गया, हालाँकि इसका अर्थ लातीनी में सिर्फ "नव" या "नया" था। १९३० तक बड़े विस्फोटों को "महानोवा" (सुपरनोवा) और छोटे विस्फोटों को "नोवा" बुलाया जाता था, लेकिन कभी-कभी एक ही चीज़ के लिए दोनों नाम प्रयोग कर लिए जाते थे।
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