विषाणु को अंग्रेजी में वायरस (Virus) कहते हैं। वायरस ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ विष है। तंबाकू के तित्तीरोग के कारण की खोज करने पर पता लगा कि यह रोग बैक्टीरिया के कारण नहीं होता, वरन् एक ऐसे जीवित पदार्थ के कारण होता है। जो बहुत ही सूक्ष्म होता है, इस सूक्ष्म पदार्थ का ही नाम वायरस पड़ा। मनुष्य का पीतज्वर, तथा आलू, ककड़ी और सलाद का चित्तीदार रोग वायरसों के कारण ही होते हैं। वायरस बैक्टीरिया को भी आक्रांत करते हैं। कुछ वायरस पौधों में रहते हुए भी उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचाते। संयुक्त सूक्ष्मदर्शी और पीछे इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से ये देखे जा सकते हैं। तंबाकू का वायरस छड़ के आकार का दिखलाई पड़ता है। इसके क्रिस्टल न्यूविलयोप्रोटीन के बने होते हैं। ये जंतुओं और पौधों की कोशिकाओं में पाए जानेवाले क्रोमोजीन के न्यूविलयोप्रोटीन के समान होते हैं।
वायरस बड़े सूक्ष्म होते हैं। अधिकांश 210 मिलिमाइक्रॉन (1 मिलिमाइक्रान मिलिमीटर का 1/10,00,000) से भी छोटे होते हैं। ये 15 और 460 मिलिमाइक्रॉन के बीच होते हैं। क्यूफीवर का वायरस सबसे बड़ा 450 मिलिमाइक्रॉन के लगभग होता है। छोटा से छोटा लगभग प्रोटीन के अणु के बराबर होता है। पोलियो रोग का वायरस इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में गोल्फ के गेंद सा दिखाई देता है।
वायरस के बाह्य भाग में प्रोटीन का एक पर्दा और केंद्र में न्यूक्लियिक अम्ल के सिवा और कुछ नहीं होता। जंतुओं के वायरस के मध्य में डी-ऑक्सीरिबोन्यूक्लियिक अम्ल रहता है। अधिकांश पौधों के वायरस कीटों द्वारा फैलते हैं। पत्तियों के घर्षण से भी ये पत्तियों में फैलते हैं। वायरस एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में फैलता है। ये कफ, खाँसी, छींक और बातचीत से एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में चले जाते हैं। वायरस से ही न्यूमोनिया, कनपेड़ा, मसूरिका, जर्मन मसूरिका, इनफ़्लूएंज़ा और जुकाम होते हैं। यकृतशोथ और पोलियों के वायरस रोगी के मल में पाए जाते हैं तथा मक्खियों द्वारा फैलते हैं। पागल कुत्ते का वायरस कुत्ते के काटने से फैलता है। भोजन और पानी से बहुत कम वायरस फैलते हैं। वायरसजनित रोगों में रैबज़, पोलियो, वायरस न्यूमोनिया, चेचक, क्यू फीवर, चिकेन पॉक्स, टेकोमा, पीतज्वर तथा कीटजनित एन्सेफ्लाइटिस इत्यादि भी हैं। इन रोगों का कोई निश्चित् इलाज नहीं है। सल्फा ड्रग और ऐंटीबायोटिक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वैक्सीन का उपयोग ही एकमात्र इलाज है।
वायरस बड़े सूक्ष्म होते हैं। अधिकांश 210 मिलिमाइक्रॉन (1 मिलिमाइक्रान मिलिमीटर का 1/10,00,000) से भी छोटे होते हैं। ये 15 और 460 मिलिमाइक्रॉन के बीच होते हैं। क्यूफीवर का वायरस सबसे बड़ा 450 मिलिमाइक्रॉन के लगभग होता है। छोटा से छोटा लगभग प्रोटीन के अणु के बराबर होता है। पोलियो रोग का वायरस इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में गोल्फ के गेंद सा दिखाई देता है।
वायरस के बाह्य भाग में प्रोटीन का एक पर्दा और केंद्र में न्यूक्लियिक अम्ल के सिवा और कुछ नहीं होता। जंतुओं के वायरस के मध्य में डी-ऑक्सीरिबोन्यूक्लियिक अम्ल रहता है। अधिकांश पौधों के वायरस कीटों द्वारा फैलते हैं। पत्तियों के घर्षण से भी ये पत्तियों में फैलते हैं। वायरस एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में फैलता है। ये कफ, खाँसी, छींक और बातचीत से एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में चले जाते हैं। वायरस से ही न्यूमोनिया, कनपेड़ा, मसूरिका, जर्मन मसूरिका, इनफ़्लूएंज़ा और जुकाम होते हैं। यकृतशोथ और पोलियों के वायरस रोगी के मल में पाए जाते हैं तथा मक्खियों द्वारा फैलते हैं। पागल कुत्ते का वायरस कुत्ते के काटने से फैलता है। भोजन और पानी से बहुत कम वायरस फैलते हैं। वायरसजनित रोगों में रैबज़, पोलियो, वायरस न्यूमोनिया, चेचक, क्यू फीवर, चिकेन पॉक्स, टेकोमा, पीतज्वर तथा कीटजनित एन्सेफ्लाइटिस इत्यादि भी हैं। इन रोगों का कोई निश्चित् इलाज नहीं है। सल्फा ड्रग और ऐंटीबायोटिक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वैक्सीन का उपयोग ही एकमात्र इलाज है।
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