वायरस बड़े सूक्ष्म होते हैं। अधिकांश 210 मिलिमाइक्रॉन (1 मिलिमाइक्रान मिलिमीटर का 1/10,00,000) से भी छोटे होते हैं। ये 15 और 460 मिलिमाइक्रॉन के बीच होते हैं। क्यूफीवर का वायरस सबसे बड़ा 450 मिलिमाइक्रॉन के लगभग होता है। छोटा से छोटा लगभग प्रोटीन के अणु के बराबर होता है। पोलियो रोग का वायरस इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में गोल्फ के गेंद सा दिखाई देता है।
वायरस के बाह्य भाग में प्रोटीन का एक पर्दा और केंद्र में न्यूक्लियिक अम्ल के सिवा और कुछ नहीं होता। जंतुओं के वायरस के मध्य में डी-ऑक्सीरिबोन्यूक्लियिक अम्ल रहता है। अधिकांश पौधों के वायरस कीटों द्वारा फैलते हैं। पत्तियों के घर्षण से भी ये पत्तियों में फैलते हैं। वायरस एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में फैलता है। ये कफ, खाँसी, छींक और बातचीत से एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में चले जाते हैं। वायरस से ही न्यूमोनिया, कनपेड़ा, मसूरिका, जर्मन मसूरिका, इनफ़्लूएंज़ा और जुकाम होते हैं। यकृतशोथ और पोलियों के वायरस रोगी के मल में पाए जाते हैं तथा मक्खियों द्वारा फैलते हैं। पागल कुत्ते का वायरस कुत्ते के काटने से फैलता है। भोजन और पानी से बहुत कम वायरस फैलते हैं। वायरसजनित रोगों में रैबज़, पोलियो, वायरस न्यूमोनिया, चेचक, क्यू फीवर, चिकेन पॉक्स, टेकोमा, पीतज्वर तथा कीटजनित एन्सेफ्लाइटिस इत्यादि भी हैं। इन रोगों का कोई निश्चित् इलाज नहीं है। सल्फा ड्रग और ऐंटीबायोटिक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वैक्सीन का उपयोग ही एकमात्र इलाज है।
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