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Monday, 19 March 2012

गीदड़ या सियार


इस जानवर को प्राय: अनेक लोगों ने देखा होगा, पर इसकी बोली से परिचित होनेवालों से परिचित होनेवालों की संख्या देखनेवालों से अधिक होगी। शीत ऋतु में प्रतिदिन अँधेरा होते ही इसकी बोली सुनाई देती है। आरंभ में एक गीदड़ हुआ हुआ बोलते है, फिर अन्य सब उसे दुहराते हैं और अंत में चिल्लाना चीखने में बदल जाता है।
गीदड़ की लंबाई दो ढ़ाई फुट और ऊँचाई सवा फुट के लगभग, पूँछ झबरी, थूथन लंबा और रंग भूरा होता। यह सर्वभक्षी है तथा सड़े गले मांस के अतिरिक्त छोटे मोटे जीवों का शिकार करता है। यह गन्ना, ईख, कंदमूल, भुट्टा आदि खाकर कृषकों को क्षति पहुँचाता है।
गीदड़ झुंडो में रहते हैं। ये दिन में झाड़ियों और काँटों में छिपे रहते हैं और संध्या होते ही आहार की खोज में निकल पड़ते हैं। कभी कभी दिन में भी दिखाई पड़ते हैं।
यह एक विशेष व सबसे रहस्यमयी परभक्षी है और कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के परभक्षियों के वरीयता क्रम मेंकाफ़ी निम्न स्थान है। अपनी हरफनमौला वाली विशेषता के कारण वह कान्हा पार्क के पारिस्थितिकी-तंत्र में विस्तृत क्षेत्रों में अपने निकट स्थापित करने में सफल हुआ है।
कभी कभी गीदड़ अकेला रहने लगता है। इस समय वह गाँव के पास छिपकर रहता है और अवसर पाते ही गाँव के पालतू कुत्ते, बकरी, भेड़ के बच्चे, मुर्गियों और कभी कभी आदमी के बच्चे को भी उठा ले जाता है। यह कायर और मक्कार, किंतु चालाक जानवर है। मादा एक बार में तीन से पाँच बच्चे जनती है।
गीदड़ की आयु लगभग 12 वर्ष की होती है। विशेष प्रकार से गीदड़ उद्यान में हर जगह दिखाई दे जाते हैं। 

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