रात के समय प्रायः पेड़-पौधों के झुरमुट के आसपास चमकते हुए जुगनुओं को तो आपने देखा ही होगा। इन्हें देखकर कभी न कभी आपके मन में यह प्रश्न भी उठा होगा कि आखिर क्यों चमकते हैं ये जुगनू? जुगनुओं के चमकने के पीछे उनका मुख्य उद्देश्य होता है अपने साथी को आकर्षित करना, अपने लिए भोजन तलाशना और कीटभक्षी शत्रुओं से अपनी रक्षा करना। जुगनुओं की चमक का रंग लाल, हरा, पीला या मिश्रित रंग का होता है। जुगनू की चमक लगातार न होकर रुक-रुक कर होती है। नर तथा मादा जुगनुओं के प्रकाश के रंग तथा जलने-बुझने का अन्तराल अलग-अलग होता है।
पहले-पहल यह माना जाता था कि जुगनू के शरीर में फास्फोरस होता है जिसकी दीप्ति से वे चमकते हैं किन्तु सन् 1794 में इटली के स्पेलेंजानी नामक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया कि जुगनू की चमक फास्फोरस से नहीं बल्कि उनके शरीर में होने वाली रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले ‘ल्युसिफेरेस’ और ‘ल्युसिफेरिन’ नामक प्रोटीनों के कारण होता है। ये प्रोटीन जुगनू के पेट के नीचे के कुछ अंगों में बनते हैं। जब ‘ल्युसिफेरेस’ और ‘ल्युसिफेरिन’ का सम्पर्क जब ऑक्सीजन से होता है तो चमक पैदा होती है।
यहाँ पर हम आपको यह बता दें कि जुगनू के अतिरिक्त शरीर से रोशनी पैदा करने और भी जीव होते हैं। ऐसे जीवों की अब तक लगभग एक हजार प्रजातियाँ खोजी जा चुकी हैं। समुद्र की गहराइयों में कुछ मछलियाँ, घोंघे, केकड़े, जैली फिश आदि भी अपने शरीर से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। कुछ प्रकार के कुकुरमुत्ते और फफूंदों में भी यह गुण पाया जाता है। इस प्रकार के जीवों के शरीर से निकलने वाली चमक शीतल प्रकृति की होती है और इसे ‘जीवदीप्ति’ कहा जाता है।
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